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Baccho ki Hindi Kahani बच्चों की हिन्दी कहानियाँ

Shivam KasyapBy Shivam KasyapSeptember 18, 2021No Comments7 Mins Read
baccho ki hindi kahani
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Baccho ki Hindi Kahani/विष्णु भगवान ने सुनाई नारद जी को माता भ्रमरी देवी की कहानी  

गायत्री मंत्र की शक्ति

एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के पास पहुँचे। विष्णुजी शेषशय्या पर आराम कर रहे थे। नारद जी ने विष्णुजी को प्रणाम किया। विष्णुजी ने उन्हें अपने पास बैठाया।  बोले-“कहा मुनिवर ! यहाँ कैसे आना हुआ ?”

नारद मुनि बोले-” प्रभु, आप मुझे भ्रमरी देवी की कथा सुनाने का कष्ट करें।” यह सुन, विष्णुजी बोले-“ठीक है मुनिवर ! मैं आपको भ्रमरी देवी की कथा सुनाता हूँ – बहुत समय पहले अरुण नाम का एक दैत्य था। वह परम शक्तिशाली होकर देवताओं को जीतना चाहता था। अतः वह हिमालय पर जाकर गायत्री मंत्र का जाप करने लगा। वर्षों तक निराहार रहकर उसने जाप किया। जाप के प्रभाव से उसका शरीर तेजस्वी हो गया। उसका तेज पुरे संसार में फ़ैल गया। उसके परम तेज से देवता डर गए। वे आपस में विचार-विमर्श कर ब्रह्म्माजी के पास पहुँचे।  इंद्र ने ब्रह्म्माजी से प्रार्थना की – “प्रभु ! हमें दैत्यराज अरुण के तेज से डर लग रहा है।  कृपया हमारे भय को दूर करें। 

“ब्रह्म्माजी ने देवताओं को आश्वासन देकर विदा किया।  देवता लौट गए। ब्रह्म्माजी दैत्यराज अरुण के सम्मुख प्रकट हुए।  उनकी आहट पाकर दैत्यराज की आँखे खुल गई। अपने सामने ब्रह्म्माजी को देख, वह हर्ष (खुशी ) से झूम उठा। उसने ब्रह्म्माजी को प्रणाम किया। ब्रह्म्माजी बोले-“दैत्यराज,मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूँ। बोलो, मैं तुम्हें क्या वर दूँ ?” यह सुनते ही दैत्यराज ने कहा -“पभु  ! मैं कभी न मरुँ, आप ऐसा वरदान देने की कृपा  करें।’

Baccho ki Hindi Kahani/विष्णु भगवान ने सुनाई नारद जी को माता भ्रमरी देवी की कहानी  

“ब्रह्म्माजी मुस्कुराकर बोले-“दैत्यराज ! मैं तुम्हें यह वरदान देने में असमर्थ हूँ। मैं ही नहीं बल्कि विष्णुजी और शंकरजी भी ऐसा वर देने में असमर्थ है, क्योंकि जो पैदा होता है, वह मरता अवश्य है। अतः तुम कोई दूसरा वर मांगों।’ दैत्यराज ने कहा-‘प्रभु ! मैं अस्त्र-शस्त्र से न मरुँ।  स्त्री-पुरुष और पशु-पक्षी भी मुझे न मार सकें, आप ऐसा वर देने का कष्ट करें।’

“ब्रह्म्माजी ने ‘तथास्तु कहा और अन्तर्ध्यान हो गए।  दैत्य ख़ुशी से झूमता हुआ पाताल लोक पहुँचा।  उसने ब्रह्म्माजी से मिले वरदान के बारे में अपने दरबारी दैत्यों को बताया। दैत्यों ने कहा-“दैत्यराज ! अब आप जल्दी ही देवताओं पर आक्रमण कर दें।  देवताओं की हार निश्चित है। दैत्यराज को यह सलाह अच्छी लगी। उसने दूत को बुलाया।  दूत को एक पत्र दिया।  कहा-“दूत, तुम यह पत्र जल्दी ही देवताओं तक पहुँचा दो।  दूत पत्र लेकर स्वर्ग में पहुँचा।  उसने देवराज इंद्र को दैत्यराज का पत्र दिया।  पत्र पढ़कर इन्द्रराज घबरा गये।  दूत चला गया, तो देवताओं ने पत्र के बारे में पूछा। 

“इन्द्र बोले-‘दैत्यराज, अरुण ने हम पर आक्रमण की धमकी दी है। हम उसके सामने टिक नहीं पायेंगे।  क्योंकि ब्रह्म्माजी के वरदान से वह परम शक्तिशाली हो गया है। हमें तुरंत ब्रह्म्मा, विष्णु, और शंकर जी की शरण में चलना चाहिए। वे ही हमें बचा सकते है।  यह सोच, सभी देवता भगवान शंकर से मिलने चल दिए। इसी बीच दैत्यराज ने स्वर्गलोक पर हमला कर सूर्य, चंद्र, अग्नि और यम को परास्त कर दिया। अब उसका स्वर्गलोक पर अधिकार हो गया। 

“उधर देवता भगवान् शंकर की शरण में बैठे थे। तभी आकाशवाणी हुई-‘यदि दैत्यराज अरुण किसी उपाय से गायत्री मंत्र का जाप त्याग दे और देवता ईशानी की पूजा करें, तो दैत्यराज से मुक्ति मिल सकती है।’ आकाशवाणी सुन शंकर जी बोले-” देवराज इन्द्र, अब आप वैसा ही करें, जैसी आकाशवाणी हुई है। आप सबका कष्ट दूर हो जाएगा।’

देवता प्रसन्न हो गए। देवराज इन्द्र ने आचार्य बृहस्पति से मंत्रणा की।  बृहस्पति उनकी बात मानकर दैत्यराज अरुण के सम्मुख जा पहुंचे।”

Baccho ki Hindi Kahani/विष्णु भगवान ने सुनाई नारद जी को माता भ्रमरी देवी की कहानी  

“दैत्यराज अरुण अपने सामने बृहस्पति को देख हैरान था। वह फिर बोला-“आचार्य बृहस्पति, मैं आपका शत्रु हूँ, फिर भी आप यहाँ पधारे ! यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ?’ बृहस्पति ने कहा-“दैत्यराज, जो देवी निरंतर हम देवताओं की सेवा में लगी रहती हैं, तुम उन देवी की आराधना करते हो।  इस तरह तुम हमारे मित्र हुए न कि शत्रु।’

यह सुनते ही दैत्यराज का माथा ठनका। उसका गायत्री मंत्र से विश्वास डगमगा गया। इसी बीच ,माया ने दैत्यराज को अपने वश में कर लिया। उसने गायत्री मंत्र का जाप त्याग दिया। जाप छोड़ते ही दैत्यराज तेज रहित हो गया। 

“उधर देवताओं ने ईशानी का ध्यान किया।  देवी प्रसन्न हो गई। वह देवताओं के सम्मुख प्रकट हुई। देवताओँ ने देवी को प्रणाम कर कहा-“देवी, आप भ्रमरों (भौरों ) से युक्त हैं। अतः आप संसार में आज से भ्रमरी देवी के नाम से प्रसिद्द होंगी।  आप दैत्यराज अरुण का वध कर, हमें उसके भय से मुक्त करने का कष्ट करें।’

देवी बोलीं-“देवगण ! मैं जल्दी ही आप सबको इस कष्ट से मुक्त कर दूँगी। आप चिंता न करें।’

इतना कहते ही चमत्कार हो गया।  देवी के चमत्कार से चारों तरफ भ्रमर ही भ्रमर दिखाई देने लगे।  दैत्यों की सेना ख़ुशी से झूम रही थी।  तभी भ्रमरी देवी ने ढेर सारे भ्रमरों के साथ दैत्यों पर हमला कर दिया। इस आक्रमण से दैत्यों में खलबली मच गई।  दैत्यराज अरुण को कुछ भी सोचने-समझने का समय नहीं मिला। भ्रमर उसके शरीर से चिपट गये और उसे काटने लगे। दैत्यराज चीखने-चिल्लाने लगा और इधर-उधर भागने लगा। भ्रमरों ने काट-काटकर उसे बेदम कर दिया। दैत्यराज जमीन पर गिरते ही मर गया।  उसकी सेना भी भाग खड़ी हुई। 

“यह समाचार मिलते ही देवताओं में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। -कहते हुए भगवान विष्णु ने कथा पूरी की। कथा सुनकर नारद गदगद हो गये। 

भूखा पड़ोसी 

एक बार एक राजा वैश बदलकर रात में नगर का भ्रमण कर रहा था।  अचानक वर्षा होने लगी। उसने एक मकान का दरवाजा खटखटाया। अंदर जाकर राजा ने गृहस्वामी से कहा-“मैं कई दिनों से भूखा हूँ। भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे हैं। जो कुछ हो, मुझे तुरंत खाने को दे दो। 

गृहस्वामी स्वयं अपनी पत्नी व बच्चों सहित तीन  दिन से भूखा था। घर में अन्न का एक दाना तक न था। वह बड़े धर्म-संकट में पड़ गया कि अपने भूखे अतिथि को कहाँ से भोजन कराएँ ? तभी उसके मन में एक विचार आया। वह घर से बाहर निकला और सामने एक दुकान से दो मुट्ठी चावल चुरा लाया। पत्नी ने उन्हें पकाकर अतिथि को खिलाने के लिए कहा। 

अगले दिन दुकानदार ने राजा से पड़ोसी की शिकायत की। कहा कि उसने दुकान से चावल चुराए हैं। राजा ने तत्काल उस व्यक्ति को बुलवाया। चावलों की चोरी  के बारे में पूछा।  उस व्यक्ति ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बीती रात की पूरी घटना सुना दी। हाथ जोड़कर कहा-‘महाराज, मेरा स्वयं का परिवार तीन दिन से भूखा था। मैंने अपने लिए चोरी नहीं की और न ही कभी करता, चाहे प्राण निकल जाते, परन्तु आधी रात में घर पर आए अतिथि को भूखा नहीं देख सकता था।”

राजा यह सुनकर बहुत दुखी हुआ। राजा ने बताया कि अतिथि वह स्वयं था। 

फिर उसने उस दुकानदार को बुलवाया। पूछा कि क्या उसने अपनी दूकान से पड़ोसी को रात में चावल चुराते हुए देखा था ? दुकानदार ने हाँ कहने पर राजा ने कहा-” इस घटना के लिए प्रथम दोषी तो मैं स्वयं हूँ। दूसरा दोषी यह दुकानदार है जिसने रात में पड़ोसी को चावल चुराते देख लिया, परन्तु तीन दिन तक पड़ोसी को परिवार सहित भूखा रहते नहीं देखा।  इसने अपना पडोसी धर्म नहीं निभाया।”

 

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