Bachcho ki
(Bacchon Ki Kahani) तलाश
एक मनुष्य को संसार से वैराग्य हुआ, उसने कहा-“यह जगत मिथ्या है, माया है, अब मैं इसका परित्याग करके सच्ची शांति की तलाश करूँगा।” आधी रात बीती और वैराग्य लेने वाले ने कहा-“अब वह घड़ी आ गई। मुझे परमात्मा की खोज के लिए निकल पड़ना चाहिए।”
एक बार पार्श्व में लेटी हुई धर्मपत्नी और दुधमुहे बच्चे की ओर सिर उठाकर देखा उसने बड़ी सौम्य आकृतियाँ थीं दोनों। वैरागी का मन पिघल उठा। उसने कहा-“कौन हो तुम जो मुझे माया में बाँधते हो।” भगवान् ने धीमे से कहा-“मैं तुम्हारा भगवान् !” लेकिन मनुष्य ने उनकी आवाज नहीं सुनी। उसने फिर कहा-“कौन हैं ये जिनके लिए मैं आत्म-सुख आत्म शांति खोऊँ ?”
एक और धीमी आवाज आई-“बावरे, यही भगवान हैं, इन्हें छोड़कर तू नकली भगवान् की खोज में मत भाग। ” बच्चा एकाएक चीखकर रो पड़ा। कोई सपना देखा था उसने। माँ ने बच्चे को छाती से लगाकर कहा-“मेरे जीवन आ, मेरी छाती में जो ममत्व है वह तुझे शांति देगा।” बच्चा माँ से लिपटकर सो गया और आदमी अनसुना करके चल दिया। भगवान ने कहा-” कैसा मुर्ख है यह मेरा सेवक, मुझे तजकर मेरी तलाश में भटकने जा रहा है।”
(Bacchon Ki Kahani) नशा एक बला
मुक़दमे के लिए कचहरी में हाजिर होने के लिए दो शराबी घर से निकले। शराब की धुन में बोतल झोले में रख ली पर कागज-पत्र घर में ही भूल गए।
घोड़े पर बैठकर चल पड़े। मध्याह भोजन के समय दोनों ने शराब भी पी। नशे में धुत, दोनों एक दूसरे से पूछते तो रहे कि कोई चीज भूल तो नहीं रहे, पर यह दोनों में से किसी को भी याद न रहा कि घोड़े पर चढ़कर आए थे, अब वे पैदल यात्रा कर रहे थे। रात जहाँ टिके वहां फिर शराब पी।
थोड़ी देर में चन्द्रमा निकला तो एक बोला-“अरे यार ! सूरज निकल आया चलो जल्दी करो नहीं तो कचहरी लग जाएगी।” बजाय शहर की ओर चलने के वे गाँव की ओर चल पड़े और सवेरा होते-होते जहाँ से चले वहीँ फिर जा पहुंचे। अनुपस्थिति में मुकदमा ख़ारिज हो गया।
(Bacchon Ki Kahani) परोपकारी को कहीं भी भय नहीं
एक गीदड़ एक दिन गड्ढें में गिर गया। बहुत उछल-कूद की किन्तु बाहर न निकल सका। अंत में हताश होकर सोचने लगा कि अब इसी गड्ढे में मेरा अंत हो जाना है। तभी एक बकरी को मिमियाते सुना। तत्काल ही गीदड़ की कुटिलता जाग उठी।
वह बकरी से बोला-“बहिन बकरी ! यहाँ अंदर खूब हरी-हरी घास और मीठा-मीठा पानी है। आओ, जी भरकर खाओ और पानी पियो।” बकरी उसकी लुभावनी बातों में आकर गड्ढे में कूद गई।
चालक गीदड़ बकरी की पीठ पर चढ़कर गड्ढे से बाहर कूद गया और हंसकर बोला-” तुम बड़ी बेवकूफ हो, मेरी जगह खुद मरने गड्ढे में आ गई हो। ” बकरी बड़े सरल भाव से बोली-“गीदड़ भाई, मैं परोपकार में प्राण दे देना पुण्य समझती हूँ।
मेरी उपयोगितावश कोई न कोई मुझे निकाल ही लेगा किन्तु तुम निरुपयोगी कोई कोई न निकलता। परोपकारी को कहीं भी भय नहीं होता है।
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