भाई बहन की कहानी
Welcome Guys आज हम आपके लिए अनाथ भाई-बहन की कहानी लेके आये है। जिसे पढ़ कर आपके रौंगटे खड़े हो जायेंगे। जब किसी के माँ-बाप का देहान्त हो जाता है तो बच्चों को कैसी-कैसी मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं। आज इस कहानी में ऐसे ही भाई-बहन की कहानी हैं, उन दोनों भाई-बहन के माता-पिता का देहान्त एक रेल दुर्घटना में हो जाता है और इसके बाद उन्हें कैसी-कैसी मुसीबत देखनी पड़ी चलिए कहानी पढ़ के जानते है। …………..
अनाथ भाई-बहन की कहानी
पीटर और सांता दो अनाथ भाई-बहन थे। उनके माँ-बाप एक रेल दुर्घटना में मारे गए थे। तब ये दोनों बहुत ही छोटे थे। इसके बाद वे अपनी चाची के पास रहने लगे। चाची का नाम था रेबेका पोसित। दोनों भाई-बहन उसे रेबेका चाची कहते थे।
रेबेका ने जागीरदार की पत्नी के पास नौकरी की थी। बड़े घर में नौकरी करने से रेबेका के मन में अहंकार समा गया। वह दूसरे लोगों को अपने से छोटा समझने लगी थी। दोनों बच्चों से भी बहुत कठोर व्यवहार करती थी। पीटर और सांता का मन दुखी रहता था, पर ये और किसके पास जाते ? कोई भी तो था नहीं उनका अपना। रेबेका का अपना कोई बच्चा नहीं था।
जागीरदार की पत्नी मरते समय रेबेका के लिए कुछ धन छोड़ गई थी, इसीलिए जैसे-तैसे रेबेका और बच्चों का जीवन चल रहा था। दोनों उम्र से बच्चे थे, पर दूसरे बच्चों जैसा जीवन नहीं था उनका। जब-जब वे दूसरे बच्चों को हँसते-खिलखिलाते देखते, तो उनका मन रो उठता। और फिर एक दिन रेबेका चाची भी चल बसीं। अब तो पीटर और सांता बिलकुल ही अकेले रह गए थे, इतनी बड़ी दुनिया में। हाँ, रेबेका के कुछ मित्र अवश्य थे, जिन्होंने तय किया कि पीटर और सांता के लिए अनाथालय ही सबसे अच्छी जगह है।
लेकिन दोनों को अलग-अलग अनाथालय में जाना था। क्योंकि लड़के-लड़कियाँ अलग-अलग रहते थे। जब पीटर और सांता को यह बताया गया तो बहुत परेशान हो उठे। उन्होंने सोचा, चाहे जो हो, ये साथ-साथ रहेंगे। कभी अलग नहीं होंगे।
तभी पीटर को याद आया, चाची रेबेका के एक रिश्तेदार सर्कस में काम करते हैं। नाम था गस। पीटर को उनका कार्ड मिल गया था।
“हम उनके पास जायेंगे। शायद वहाँ हमें रहने की जगह मिल जाए।”
“पर हम उनसे कभी नहीं मिले हैं। अगर उन्होंने मना कर दिया तो क्या होगा ?” -सांता ने कहा।
पीटर बोला-“तो फिर हमें अलग-अलग अनाथालय में रहना होगा “
“नहीं,नहीं , मैं तुमसे अलग होकर कहीं नहीं रहूंगी। “-सांता की आवाज में डर झांक रहा थे।
और फिर एक रात दोनों भाई-बहन अनजान सफर पर चल दिए। वे कुछ नहीं जानते थे कि कहाँ जाना है, और जिसके पास जा रहे हैं, वह कैसा आदमी है ! पर एक नन्हीं-सी आशा भी थी-शायद रास्ता मिल जाए। यह गस नामक व्यक्ति उन्हें अपना ले। तब तो उन्हें अनाथालय में नहीं जाना पड़ेगा। इस तरह अँधेरी सड़को पर नहीं भटकना पड़ेगा।
भाई बहन की कहानी
रात बीतने लगी। दोनों भाई-बहन चले जा रहे थे। सड़क के दोनों और मकानों में लोग आराम की नींद में डूबे थे। पर अभागे पीटर और सांता आश्रय की खोज में भटक रहे थे। नींद सताने लगी, तो दोनों एक मकान की सीढ़ियों पर लेट गए। फिर न जाने कब नींद आ गई।
एकाएक पीटर की नींद खुली। एक आदमी पास में खड़ा उसे झकझोर रहा था। वह उस मकान में रहता था।
अब तक सांता की नींद भी टूट गई थी। उस आदमी को दो बच्चों को इस तरह खुले में सोते देखकर हैरानी हो रही थी। उसने पूछा, तो पीटर ने सारी बात कह सुनाई। बता दिया कि उनके गस अंकल काब्स सर्कस में काम करते हैं।
उस आदमी ने बता दिया कि काब्स सर्कस ब्राइडलिंटन में खेल दिखा रहा है। उसने कहा-“बच्चों, रात को मेरे घर में आराम करो। सुबह चले जाना।”
बांकी रात दोनों ने नरम बिस्तर पर आराम से बिताई। सुबह अंकल गस की खोज में चल दिये। वे पूछ-ताछकर बढ़ते रहे। जब पीटर और सांता ब्राइडलिंटन में पहुँचे, तो काब्स सर्कस अभी वहाँ नहीं पहुँचा था।
कुछ देर बाद सर्कस की गाड़ियाँ एक मैदान में आकर खड़ी होने लगीं। उनमें हाथी, घोड़े और सींखचेदार बड़े-बड़े पिजरों में शेर भी थे। वे वहाँ खड़े-खड़े देखते और रोमांचित होते रहे। किसी सर्कस को इतने निकट से देखने का दोनों भाई-बहन के लिए यह पहला मौका था।
उन्होंने गस के बारे में पूछा, तो एक आदमी दोनों को अपने साथ ले गया। गस अधेड़ उम्र का, गंभीर चेहरे वाला आदमी था। जब उसे पता चला कि उसके भतीजा-भतीजी आए हैं, तो वह हैरान हुआ। और अपने तम्बू से बाहर आ गया।
पीटर और सांता ने उसे नमस्कार किया। चाची रेबेका के बारे में बताया। कहा-“अब हमारे पास कोई स्थान नहीं है रहने के लिए। इसीलिए हम आपके पास आए हैं। हल अलग-अलग अनाथालय में जाकर नहीं रहना चाहते।”
गस अकेला रहता था। उसे दोनों बच्चों का आना अच्छा नहीं लगा। वह रेबेका का दूर का रिश्तेदार था। उसे यह कल्पना नहीं थी कि इस तरह दो अनाथ बच्चे ढूँढ़ते हुए यहाँ तक आ जायेंगे। पर पीटर और सांता को एकदम दुत्कार भी नहीं सकता था, क्योंकि सारे सर्कस में गस के रिश्तेदारों की चर्चा होने लगी थी।
गस से कठोर स्वर में कहा-“तुम दोनों मेरे पास क्यों आए ? अनाथालय में चले जाते, तो अच्छा रहता। खैर, जब तक सर्कस खेल दिखा रहा हूँ, तब तक मैं तुम लोगों को साथ रखूँगा। उसके बाद तुम जानो, तुम्हारा काम !”
भाई बहन की कहानी
पीटर और सांता, गस के रूखे व्यवहार से सहम गए। वे जाते भी तो कहाँ ? वे जानना चाहते थे कि सर्कस कब तक खेल दिखाएगा, पर कुछ भी पूछने की हिम्मत न हुई। इस तरह सांता और पीटर काब्स सर्कस के साथ रहने लगे। वहाँ की दुनिया उनके लिए अनोखी थी। दिन में सर्कस के कलाकारों को अभ्यास करते देखते, तो विचित्र लगता।
सर्कस जिस कस्बे में जाता-कलाकारों के बच्चे वहाँ के स्कूल में पढ़ने के लिए जाते। हर कस्बे में सर्कस चार-पांच दिन तक रुकता था। पीटर सोचता था-“विचित्र है यह पढ़ाई ! ऐसे में कोई क्या पढ़ सकता है भला ! पर वे दोनों तो उस दिन तक एक बार भी स्कूल नहीं गए थे।
गस के कहने पर वे बच्चों के साथ एक स्कूल में गए। वहाँ छात्रों ने इनका खूब स्वागत किया। छात्रों ने पीटर और सांता का परिचय पूछा, तो पीटर ने संकोच से कहा-“हम सर्कस वाले नहीं हैं। हम तो थोड़े समय के लिए आए हैं।” फिर भी वे इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सके की वे कहाँ से आए हैं ?
सर्कस कलाकारों के बच्चे स्कूल में करतब दिखने लगे, पर सांता और पीटर के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं था। सच तो यह था कि रेबेका चाची ने उन्हें कुछ भी नहीं सिखाया था।
दोनों भाई-बहन सर्कस वाले बच्चों से अलग खड़े थे। सांता ने कहा-“मैं सर्कस के करतब तो नहीं जानती, पर बहुत अच्छा वायलिन बजा सकती हूँ।”
“और मैं लैटिन जानता हूँ।”-पीटर ने गर्व से कहा। वे दोनों झूठ बोल रहे थे।
गस ने यह सुना, तो उसने सांता से कहा-“मैंने सुना, तुम बहुत अच्छा वायलिन बजाती हो। सबको कोई धुन सुनाओ।” उस समय गस के आसपास कई लोग बैठे थे। अब तो सांता के काटो तो खून नहीं।
वायलिन लाया गया, पर सांता ठीक से न बजा सकी। सब उसकी हँसी उड़ाने लगे। पीटर डर रहा था कि कहीं उसके लैटिन ज्ञान की परीक्षा न लेने लगें।
एक रात पीटर और सांता को नींद नहीं आ रही थी। सर्कस का शोर शांत हो चूका था। कलाकार दर्शकों की भीड़ के सामने अपना कौशल दिखाकर आराम से सो रहे थे। पशुओं के बाड़ों में भी शांति थी। तभी सांता ने कहा-“पीटर, हम यहाँ रहते हुए भी, यहाँ के नहीं हैं।”
-“हाँ सांता ! यहाँ हमें कोई नहीं चाहता। गस अंकल तो जरा भी पसंद नहीं करते। आखिर हम क्या करें।”
“हमें गस अंकल का मन जितना चाहिए। “-सांता ने पीटर से कहा-‘तभी हम यहाँ रह सकेंगे।” वे गस अंकल को कैसे खुश कर सकते हैं, इसी पर सोचते-सोचते सो गए।
सुबह हुई तो सांता ने डेरे की सफाई करके नाश्ता बनाना शुरू कर दिया। उसे आशा थी, नाश्ता करके गस उसकी तारीफ करेगा। पर उसे निराश होना पड़ा। गस ने कहा-“सांता, तुम्हें नाश्ता बनाना नहीं आता। आगे कभी मत बनाना।” दुःख और अपमान के कारण सांता रो पड़ी।
उधर पीटर गस की कार को चमकाने में लगा था। उसे लग रहा था, गस अंकल उसकी मेहनत से प्रसन्न होकर उसे शाबासी देंगे, पर गस ने देखकर मुँह चढ़ा लिया। कहा-“यह तुम्हारा काम नहीं। जाकर बच्चों के साथ खेलो।”
पीटर और सांता का मन रो उठा। उन्हें लगा कि वे गस का मन कभी नहीं जीत सकेंगे। पीटर ने सांता से कहा-‘बहन, मैं सोचता हूँ, हमें कोई और रास्ता अपनाना होगा। “
“हाँ, मेरा भी यही ख्याल है।”- सांता बोली।
भाई बहन की कहानी
उस दिन से उन्होंने गस को प्रसन्न करने की कोशिश छोड़ दी। सांता लड़कियों को सर्कस के करतब सीखने वाली महिला के पास गई। उसने उससे सीखने की इच्छा प्रकट की। पीटर बेन नामक व्यक्ति के पास गया। बेन घुड़सवारी का प्रशिक्षण देता था। वह पीटर को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार हो गया।
पीटर और सांता चुपचाप सीखने लगे। यह सब वे गस से छिपकर कर रहे थे। वे उसे चौंका देना चाहते थे। पीटर सुबह मुँह धोकर अँधेरे में सीखने के लिए निकल जाता। इसी तरह दिन बीत रहे थे। गस को पीटर और सांता के बारे में सचमुच कुछ पता नहीं था। वह उन्हें अपने पर बोझ मान रहा था। चाहता था कि सर्कस का सीजन ख़त्म हो, तो वह दोनों से छुटटी पा ले।
एक सुबह सर्कस में हड़कम्प मच गया। सब इधर-उधर भाग-दौड़ कर रहे थे। पीटर भी बाहर आकर देखने लगा। सब हाथियों के बाड़े की तरफ दौड़े जा रहे थे। पता चला-रानी नामक हथिनी गुस्से में है। उसने महावत को उठाकर फेंक दिया था। और न जाने क्या कर बैठे ! पीटर जाकर बाड़े के बाहर खड़ा हो गया। रानी बार-बार सूंड़ उठाती और इधर से उधर हिलाती। सब कह रहे थे-“दूर रहो।” पर पीटर न जाने कब रानी के पास जा पहुँचा। वह हथेली से रानी की सूंड़ थपथपाने लगा। वहाँ खड़े लोगों में सन्नाटा छा गया। सब साँस रोके देख रहे थे। वे पीटर के लिए चिंतित थे। सोच रहे थे-“रानी अब उसे पैरों से कुचल देगी।
पर ऐसा कुछ न हुआ। पीटर द्वारा इस तरह सूंड़ थपथपाने से रानी की उत्तेजना शांत होती गई। पीटर की जेब में गाजरें थीं। उसने गाजरें दीं, तो रानी खाने लगी ! कुछ देर में वह सामान्य हो गई। पीटर बहुत देर तक रानी के पास खड़ा दुलारता रहा। पूरे सर्कस में पीटर के साहस की चर्चा थी। लोग कह रहे थे -“अगर पीटर न होता, तो रानी न जाने क्या कर डालती।” पीटर सोच रहा था-“क्या गस अंकल ने भी यह बात सुनी होगी ?’
वह सर्कस का आखिरी दिन था। गस ने पीटर और सांता से कहा-“अब मैं तुमसे विदा लूँगा। मैंने तुम दोनों के लिए एक स्कूल में व्यवस्था कर दी है। तुम्हारी रेबेका चाची के मित्र तुम्हारी देखभाल करेंगे।”
रेबेका चाची के मित्रों के पास जाने की बात सुन, दोनों परेशान हो उठे। उन्हीं के पास से भागकर तो पीटर और सांता यहाँ आए थे। अब वे सर्कस की जिंदगी स्वीकार कर चुके थे, तो उन्हें फिर से निकालने की तैयारी हो रही थी।
उसी रात सर्कस के तम्बू में आग लग गई। घोड़े उसमें फँस गए। पीटर ने देखा, तो फिर दौड़ता हुआ तम्बू में घुस गया। घोड़ों के बंधन खोलकर बाहर ले आया। इस काम में उसे चोट भी आई, पर उसने परवाह नहीं की। उसे ख़ुशी थी कि उसने घोड़ों को जलने से बचा लिया था।
अगली सुबह सब विदा हो रहे थे। सर्कस का सामान गाड़ियों में लादा जा रहा था। पीटर और सांता एक तरफ खड़े थे। वे किसी के नहीं थे, कोई नहीं था उनका।
तभी सर्कस के मालिक ने गस से कहा-“मैंने सुना है, तुम दोनों बच्चों को दूर के स्कूल में भेज रहे हो। यह तो ठीक नहीं है। अब ये हमारे हैं। ये कहीं नहीं जायेंगे। हमारे साथ रहेंगे।”
पीटर और सांता ने गस अंकल को पहली बार हँसते देखा-“बच्चे जैसा चाहें।” अब दोनों भाई-बहन अनाथ नहीं रह गए थे। उन्हें अपना सर्कस का परिवार मिल गया था। वे मुस्कुरा रहे थे।
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