Essay on Holi in Hindi/Hindi Holi Essay /Holi Hindi Essay/Short Hindi Holi Essay
रंगों का पर्व होली (300 शब्द)
प्रस्तावना – हमारे देश के विभिन्न त्योहारों में होली भी एक महत्तवपूर्ण त्यौहार है। हर वर्ष होली की प्रतीक्षा बड़ी उत्सुकता से की जाती है। हर गली, हर गाँव और हर नगर में कई दिन पहले से ही होली खेलने की तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं।
मनाने का समय – रंगों का प्रतीक यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस कारण इसे त्यौहार को फाल्गुनी के नाम से भी जाना जाता है।
मनाने के कारण – होली का केवल यही एक पक्ष नहीं। इसका एक सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक रूप भी है। कहते हैं कि इस पर्व का सम्बन्ध भक्त प्रह्लाद की कथा से जुड़ा हुआ है। वह हिरण्यकश्यप का पुत्र था। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप कट्टर नास्तिक था और प्रह्लाद कट्टर आस्तिक था।
हिरण्यकश्यप ने उसे दण्डित करने का आदेश दे दिया। संयोगवश प्रह्लाद की बुआ होलिका को यह वर प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। भाई की योजनानुसार वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयी। और भगवान की ऐसी कृपा हुई की होलिका तो जल गयी, परन्तु प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ। संभव है, इसी कथा के और होलिका के नाम पर होलिका-दहन का रिवाज़ चला तो इस पर्व का नाम होली पड़ गया।
मनाने के ढंग – मुख्य त्यौहार दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन बालक और बालिकाएँ घर-घर घूम-घूमकर लकड़ियाँ इकट्ठी करती हैं। वह फाल्गुन की पूर्णिमा की रात होती है, पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मंत्र-पाठ के अनन्तर पवित्र अग्नि जलायी जाती है। कुमारी युवतियाँ भक्ति और श्रद्धा से अग्निदेव को नारियल समर्पित करती हैं।
होली के दूसरे दिन सूर्य निकलते ही एक और सूर्य प्रकाश में रंग बिखेर देता है, दूसरी और धरती पर रंगों की धूम मच जाती है। बच्चों, बूढों, युवक और युवतियों में एक-दूसरे पर रंग डालने की होड़-सी लग जाती है। पूरा वातावरण हर्सोल्लास से गूँजने लगता है। रंग की पिचकारियाँ ख़ुशी के फव्वारे छोड़ने लगती हैं।
दोष – कितने मुर्ख हैं वे लोग जो इस पुण्य अवसर पर शराब पीते, कींचड़ उछालते और अश्लीलता का प्रदर्शन करके इस पवित्र पर्व के रूप को बिगाड़ते हैं।
उपसंहार – इस प्रकार होली केवल एक त्यौहार नहीं अपितु अनेक घटनाओं और उनके साथ जुड़े विश्वासों का साकार रंगीन रूप भी है। इसलिए इस दिन लोग अपने सारे बैर-भाव भुलाकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं।
रंगों का पर्व होली पर निबंध (400 शब्द)
प्रस्तावना – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह हमेशा समाज में रहना पसंद करता है। उसकी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति समाज द्वारा ही सम्भव है। प्राचीन काल से ही मानव उत्सवों अथवा त्योहारों का प्रेमी रहा है। हमारे देश में समय-समय पर किसी न किसी त्यौहार का आयोजन होता रहा है; जैसी-रक्षाबन्धन, दीपावली, होली आदि। इन उत्सवों से दैनिक कार्यों की थकान दूर हो जाती है। आपस में मित्रता का भाव भी उत्पन्न होता है।
मनाने का समय – प्रायः सभी उत्सव ऋतुओं के उत्सव होते हैं। यह त्यौहार भी वसन्त ऋतु का त्यौहार माना जाता है। यह त्यौहार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, परन्तु इसका प्रारम्भ माघ पूर्णिमा से हो जाता है। यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है, जिसकी अवधि एक माह से होती है। सम्पूर्ण माह में होली के गीतों का आयोजन होता रहता है। इस त्यौहार के समय न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी।
मनाये जाने के कारण – इस उत्सव के मनाने के सम्बन्ध में विभिन्न मत है व अनेक कथाएँ भी प्रचलित हैं। उन सभी कथाओं में यह कथा अधिक प्रसिद्ध है कि होलिका अपने भाई हिरण्यकश्यप की आज्ञा मानकर प्रह्लाद को गोदी में बैठाकर अग्नि में प्रवेश कर गयी, किन्तु भक्त प्रह्लाद सकुशल निकल आया और होलिका यहीं जलकर भस्म हो गयी। उसकी स्मृति में प्रतिवर्ष यह त्यौहार मनाया जाता है। प्रह्लाद से सुरक्षित बचने के कारण ही लोग प्रसन्न होते है और नाना प्रकार के गीतों को गाते हैं। कुछ लोग इस प्रकार बताते हैं कि प्राचीन काल में यह त्यौहार सामूहिक यज्ञ के रूप में मनाया जाता था। जिसमें अन्न की आहुति देकर देवताओं को खुश किया जाता था। यह कथा भी किसी सीमा तक सत्य है, क्योंकि आज भी होली में गेहूँ की बालियाँ भूनी जाती हैं और उनके दानों को प्रसाद के रूप में परिवार में वितरित किया जाता है।
वर्णन – इस त्यौहार के आगमन के पूर्व ही व्यक्ति रंग और गुलाल प्रारम्भ कर देते हैं। प्रत्येक घर में नाना प्रकार के पकवान एवं मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। सभी व्यक्ति बड़े सुन्दर ढंग के मित्र-भाव उत्पन्न करके होली के मधुर गीत गाने लगते हैं तथा आपस में रंग और गुलाल का आदान-प्रदान करते हैं। रंग-क्रीड़ा के बाद सभी व्यक्ति स्वच्छ परिधान धारण करते हैं और सभी व्यक्ति सम्पूर्ण वर्ष के आपसी द्वेष-भावों को भूलकर प्रेमपूर्वक एक-दूसरे से मिलते हैं।
दोष एवं निराकरण – हिन्दुओं का यह त्यौहार सबसे श्रेष्ट त्यौहार माना जाता है, फिर भी इस त्यौहार में कुछ दोष उत्पन्न हो गए हैं। इस त्यौहार में प्रायः देखा जाता है कि व्यक्ति शराब, भाँग, गाँजा आदि मादक वस्तुओं का प्रयोग बड़ी मात्रा में करते हैं तथा कुछ अपशब्दों का प्रयोग भी किया जाता है। रंग तथा गुलाल के स्थान पर गोबर तथा कीचड़ डालकर होली खेलते हैं। इससे बहुतों को चोट लग जाती है तथा कहीं-कहीं पर धन-जान की भी हानि होती है। भारतीय संपत्ति; जैसे-रेल, बसों आदि पर पथराव एवं कीचड़ फेंका जाता है, जिससे टूट-फूट होकर व्यक्ति भी घायल हो जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो वृहद रूप भी खड़ा हो जाता है। इस प्रकार की बहुत-सी कुप्रथाएँ, बुराइयाँ एवं कुरीतियाँ प्रचलित हैं, जिनको दूर करना बहुत आवश्यक है।
उपसंहार – हमारा कर्त्तव्य है कि हमें त्योहारों का वास्तविक उद्देश्य समझकर आपस में प्रेम-भावनाओं के साथ त्यौहार मनाना चाहिए। नाना प्रकार की कुरीतियों एवं दोषों का त्याग करके त्योहारों को उचित सम्मान देना चाहिए तथा सामाजिकता का आदर्श स्थापित करना चाहिए, क्योंकि व्यक्ति समाज से ही नागरिकता का पाठ सीखता है।
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