Hindi Moral Stories Short
बादशाह और माली
फारस देश का बादशाह नौशेरवां अपनी न्यायप्रियता के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गया था। वह बहुत दानी भी था। एक दिन अपने मंत्रियों के साथ घूमने निकला। उसने देखा कि एक बगीचे में एक बूढ़ा माली अखरोट के पेड़ लगा रहा है। बादशाह उस बगीचे में गया। उसने माली से पूछा –‘तुम यहाँ नौकर हो या यह तुम्हारा की बगीचा है ?’
माली –‘मैं नौकरी नहीं करता। यह बगीचा मेरे ही बाप – दादों का लगाया है। ‘
बादशाह –‘तुम ये अखरोट के पेड़ लगा रहे हो। क्या तुम समझते हो कि इनका फल खाने के लिए तुम जीवित रहोगे ?”
अखरोट का पेड़ लगाने के बीस बरस बाद फलता है, यह बात प्रसिद्ध है। बूढ़े माली ने बादशाह की बात सुनकर कहा -‘ मैं अबतक दूसरे के लगाये पेड़ों के बहुत फल खा चूका हूँ। इसलिए मुझे भी दूसरों के लिये पेड़ लगाने चाहिये। अपने फल खाने की आशा से ही पेड़ लगाना तो स्वार्थपरता है।’
बादशाह माली के उत्तर से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसे पुरस्कार में दो सशर्फियाँ दीं।
Hindi Moral Stories Short
नेकी का बदला
एक वृक्ष की डालपर एक कबूतर बैठा था। वह वृक्ष नदी के किनारे था। कबूतर ने डालपर बैठे – बैठे नीचे देखा कि नदी के पानी में एक चींटी बहती जा रही है। वह बेचारी बार-बार किनारे आना चाहती है; किंतु पानी की धारा उसे बहाए लिए जा रही है। ऐसा लगता है कि चींटी थोड़े क्षणों में ही पानी में डूब कर मर जाएगी। कबूतर को दया आ गई। उसने चोंच से एक पत्ता तोड़कर चींटी के पास पानी में गिरा दिया। चींटी उस पत्ते पर चढ़ गई। पत्ता बहकर किनारे लग गया। पानी से बाहर आकर चींटी कबूतर की प्रशंसा करने लगी।
उसी समय एक बहेलिया वहां आया और पेड़ के नीचे छिपकर बैठ गया। कबूतर ने बहेलिया को नहीं देखा। बहेलिया अपना बांस कबूतर को फँसा लेने के लिए ऊपर बढ़ाने लगा। चींटी ने यह सब देखा तो पेड़ की ओर दौड़ी। वह बोल सकती तो अवश्य पुकारकर कबूतर को सावधान कर देती; किंतु बोल तो वह सकती नहीं थी। अपने प्राण बचाने वाले कबूतर की रक्षा करने का उसने विचार कर लिया था। पेड़ के नीचे पहुंचकर चींटी बहेलिया के पैरपर चढ़ गई और उसने उसकी जांघ में पूरे जोर से काट लिया।
चींटी के काटने से बहेलिया चमक गया। उसका बाँस हिल गया। इससे पेड़ के पत्ते खड़क गए और कबूतर सावधान होकर उड़ गया।
जो संकट में पड़े लोगों की सहायता करता है,उस पर संकट आने पर उसकी सहायता का प्रबंध भगवान अवश्य कर देते हैं।
Hindi Moral Stories Short
अतिथि सत्कार
यह कथा पुराण में आयी है। चिड़ियों को फंसाकर उन्हें बेचने वाला एक बहेलियां था। वह दिन भर अपना गोंद लगा बांस लिए वन में घूमा करता था और चिड़ियों को फँसाया करता था। एक बार सर्दी के दिनों में बहेलिया बड़े सवेरे जंगल में गया। उस दिन उसे कोई चिड़िया नहीं मिली। एक जंगल से दूसरे जंगल में भटकते हुए उसे पूरा दिन बीत गया। वह इतनी दूर निकल गया था कि घर नहीं लौट सकता था। अंधेरा होने पर एक पेड़ के नीचे रात बिता देने के विचार से वह बैठ गया।
उस दिन दिनमें वर्षा हुई थी। ओले पड़े थे। सर्दी खूब बढ़ गई थी। बहेलिये के पास कपड़े नहीं थे। वह जंगल में रात बिताने की बाद सोचकर घर से नहीं चला था। हवा जोर से चलने लगी। बहेलिया थर – थर कांपने लगा। जाड़े के मारे उसके दांत कट – कट बजने लगे।
जिस पेड़ के नीचे बहेलिया बैठा था, उस पेड़ के ऊपर कबूतर का एक जोड़ा घोसला बनाकर रहता था। बहेलिये की दुर्दशा देखकर कबूतर ने अपनी कबूतरी से कहा –‘यद्यपि यह हम लोगों का शत्रु है; किंतु आज हमारे यहां अतिथि हुआ है। इसकी सेवा करना हम लोगों का धर्म है। अभी तो रात प्रारंभ हुई है। जाड़ा अभी बढ़ेगा। यदि इसे ऐसे ही रहना पड़ा तो रातभर में यह जाड़े के मारे मर जाएगा। हम लोगों को इसकी मृत्यु का पाप लगेगा। इसका जाड़ा दूर करने का उपाय करना चाहिए। ‘
कबूतरी और कबूतर ने अपना घोंसला नीचे गिरा दिया। थोड़े और तिनके चोंच में दबा – दबाकर लाकर गराये। फिर कबूतरी उड़ गयी और दूरसे एक जलती लकड़ी चोंच में पकड़कर ले आयी। वह लकड़ी उसने तिनकोंपर डाल दी। तनके जलने लगे। बहेलिया ने आस पास से इकट्ठी करके और लकड़ियां आग में डाल दी। उसका जाड़ा दूर हो गया।
बहेलिया दिनभर का भूखा था। अब वह अग्नि के प्रकाश में इधर – उधर देखने लगा कि कहीं कुछ मिल जाय तो खाकर भूख मिटावें। उसका मुख भूख से सूख रहा था। कबूतरी ने यह देखा तो वह कबूतर से बोली –‘अतिथि तो साक्षात् भगवान् का स्वरुप होता है। जिसके घर से अतिथि भूखा चला जाता है,उसके सब पुण्य नष्ट हो जाते हैं। यह बहेलिया आज हमलोगों का अतिथि है और भूखा है। हमारे पास इसकी भूख मिटाने को और तो कुछ है नहीं, मैं इस जलती आग में कूदती हूँ, जिससे मेरा मांस खाकर यह अपना पेट भर ले।’
कबूतरी इतना कहकर पेड़ से अग्नि में कूद पड़ी। कबूतर ने अपने मन में कहा –‘इस अतिथि का पेट कबूतरी के थोड़े से मांस से कैसे भरेगा ! मैं भी आग में कूदकर अपना मांस से दूंगा।’कबूतर भी आग में कूद पड़ा।
उसी समय आकाश में बाजे बजने लगे। फूलों की वर्षा होने लगी। देवताओं का विमान उतरा और उसमें बैठकर देवताओं के समान रूप धारण करके कबूतर और कबूतरी उस दिव्य लोकको चले गए, जहां बड़े-बड़े यज्ञ करनेवाले राजा तथा बड़े-बड़े ऋषि – मुनि भी बड़ीकठिनाई से पहुंच पाते हैं।
Hindi Moral Stories Short
किसान और सारस
एक किसान चिड़ियों से बहुत तंग हो गया था। उसका खेत जंगल के पास था। उस जंगल में पक्षी बहुत थे। किसान जैसे ही खेत में बीज बोकर, पाटा चलाकर घर जाता, वैसे ही झुंड – के – झुंड पक्षी उसके खेत में आकर बैठ जाते और मिट्टी कुरेद – कुरेदकर बोये बीज खाने लगते। किसान पक्षियों को उड़ाते – उड़ाते थक गया। उसके बहुत – से बीज और चिड़ियों ने खा लिये। बेचारे को दोबारा खेत जोतकर दूसरे बीज डालने पड़े।
इस बार किसान एक बहुत बड़ा जाल ले आया। उसने पूरे खेत पर जाल बिछा दिया। बहुत – से – पक्षी खेत में बीज चुगने आये और जाल में फँस गये। एक सारस पक्षी भी उस जाल में फँस गया।
जब किसान जाल में फंसी चिड़ियों को पकड़ने लगा तो सारस ने कहा —‘आप मुझ पर कृपा कीजिए। मैंने आपकी कोई हानि नहीं की है। मैं न मुर्गी हूँ, न बगुला और न बीज खाने वाला कोई और पक्षी। मैं तो सारस हूँ। खेती को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को मैं खा जाता हूं। मुझे छोड़ दीजिए।’
किसान क्रोध भरा था। वह बोला –‘तुम कहते तो ठीक हो, किंतु आज तुम उन्हीं चिड़ियों के साथ पकड़े गए हो। जो मेरे बीज का जाया करती हैं। तुम भी उन्हीं के साथी हो। तुम इनके साथ आए हो तो इनके साथ दंड भी भोगों।
जो जैसे लोगों के साथ रहता है। वह वैसा ही समझ समझा जाता है। बुरे लोगों के साथ रहने में बुराई न करने वालों को भी दंड और अपयश मिलता है। उपद्रवी चिड़ियों के साथ आने से सारस को बंधन में पड़ना पड़ा।
अगर आप ऐसे ही प्रेरणा से भरी और कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं , तो यहाँ पर Click करें। और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। Thank You !