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Home >> King Story In Hindi एक राजा और उसके सिंहासन की पुतलियाँ 
कहानियाँ

King Story In Hindi एक राजा और उसके सिंहासन की पुतलियाँ 

By Shivam KasyapJuly 11, 2021No Comments6 Mins Read
King Story In Hindi
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King Story In Hindi

एक राजा और उसके सिंहासन की पुतलियाँ 

प्राचीन काल में वीरपुर नाम का एक नगर था। वहां के राजा थे वीरभद्र।  वीरभद्र अपने पूर्वजों की तरह न्यायप्रिय, बुद्धिमान एवं प्रजापालक थे। उनके राजसिंहासन में दो पुतलियाँ लगी हुई थीं।  एक का नाम था रुपानी और दूसरी का नाम था कल्याणी।  रुपानी राजा से हमेशा सौन्दर्य का बखान करती और कल्याणी प्रजा के हित की बात राजा को बताया करती थी। 

दोनों पुतलियों की आपस में बिल्कुल नहीं पटती(निभती) थी।  वे एक-दूसरे की काट में लगी रहती थीं। रुपानी हमेशा राजा को समझाने की कोशिश करती-“रूप और सौन्दर्य ही दुनिया में सबसे अच्छे हैं। एक राजा को इन्हीं में ज्यादा समय लगाना चाहिए।’ कल्याणी गुणों का बखान करती।  वह गुणों को रूप से श्रेष्ट बतलाती।  राजा दोनों की बातें सुनकर, निर्णय अपनी बुद्धि और विवेक से लिया करते थे।  वह हमेशा चतुर सभासदों की सलाह लेकर ही काम करते थे।

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कुछ समय बाद वीरभद्र बहुत बीमार पड़े। अपना आखिरी समय जान, उन्होंने अपने बेटे छविप्रिय को बुलाकर कहा-“बेटा,  यह मेरा आखिरी समय है। अब सिंहासन पर तुम्हें बैठना है। तुम्हें एक जरुरी बात बता रहा हूँ।  तुम इन दोनों पुतलियों में से कभी किसी का अनादर मत करना।  इन दोनों में हमेशा संतुलन बनाए रखना।” कुछ दिन बाद राजा वीरभद्रस्वर्ग सिधार गए। 

वीरभद्र के राजसिंहासन पर छविप्रिय आसीन हुए। वह बड़े ही निरंकुश और विलासी थे। हमेशा राग-रंग  में डूबे रहते थे। 

काफी दिनों बाद छविप्रिय पहली बार राज दरबार में आए।  वह सिंहासन पर बैठे, तो कल्याणी बोली-“राजन, आप बहुत अधिक विलासी होते जा रहे हैं।  राग-रंग  और नृत्य-संगीत से ही राजकार्य नहीं चलता। आप अपने चतुर सभासदों की भी सलाह नहीं मान रहे हैं। गुणों का सम्मान करना सीखिए। अपने पिता की बातें याद रखें।”

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राजा को उसकी यह बात अच्छी न लगी।  वह कुछ बोलना चाहते थे, तभी रुपानी बोल पड़ी-“राजन, आप कल्याणी की बातों में न आइए।  यह हमेशा गुणों का ही बखान करती रहती है।  इसे यह नहीं मालूम कि सौन्दर्य का जीवन में कितना महत्व है। सुन्दर चीजें ही तो आनंद और सुख प्रदान करती हैं। बिना इसके जीवन नीरस हो जाता है।”

राजा बोला-“तुम ठीक कहती हो। सौन्दर्य के बिना जीवन बिल्कुल उजाड़ लगता है। मैं राजमहल को सुन्दर ढंग से सजाऊँगा।  रजवाटिका के कँटीले पौधों को उखाड़, सुन्दर-सुन्दर पौधे लगवाऊँगा। 

कुछ दिनों बाद जब राजा फिर दरबार में आए, तो दरबार की रौनक ही बदल गई थी। बड़े खुश थे राजा। वह ज्योंही सिंहासन पर बैठे, कल्याणी बोली-“राजन, आपका एक ओर का झुकाव ठीक नहीं।सौन्दर्य के साथ-साथ गुणों का भी सम्मान होना चाहिये। वर्ना राज्य पर विपत्ति घिर आएगी।”

कल्याणी की बात राजा को फिर अच्छी न लगी। वह कुछ जवाब देता, उसके पहले ही राजवैद्य बोल पड़े-“हाँ, राजन,कल्याणी ठीक कहती है। आप उसकी बातों पर भी विचार कीजिए।”

राजा ने गुस्से में कहा-“तुमसे कौन सलाह मांग रहा है ? बीच में बोलकर तुमने भारी अपराध किया है।  तुम्हें देश निकाला दिया जाता है।” राजा के हुक्म पर सिपाहियों ने राजवैद्य को देश की सीमा से बाहर कर दिया। 

संयोग की बात, दूसरे ही दिन राजवाटिका  में टहलते हुए राजकुमार को एक साँप ने डस लिया। बहुत उपचार हुआ, किन्तु उसे कोई बचा न सका। 

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पुत्रशोक से दुखी राजा दरबार में पहुंचे। सिंहासन पर बैठना चाहा, तभी कल्याणी बोली-“राजन, देख लिया, मेरी बात न मानने का परिणाम। अगर वाटिका से सारे कँटीले पौधों को न हटाया गया होता, तो सांप वाटिका में प्रवेश ही न कर पाता, क्योंकि उनमें बहुत-से ऐसे पौधे भी थे, जिनकी महक से साँप दूर भागता है। साँप के डसने के बाद भी राजकुमार को मृत्यु से बचाया जा सकता था, मगर आपने तो राजवैद्य को देश निकाला दे दिया था। राजवैद्य के पास विषधर से बचाने की अचूक औसधियाँ थी।  मैं बराबर आपसे कहती रही हूँ, गुणों को महत्व दीजिए।  मगर आप सुनते ही नहीं। ” कहकर पुतली मौन हो गई। 

अच्छा मौका देख, दूसरी पुतली रुपानी बोली-“कल्याणी, ऐसे शोक के समय में तुम राजा का उपवास कर रही हो। वह अच्छी बात नहीं। 

राजा पहले से ही झुंझलाए हुए थे। रुपानी की बातों ने आग में घी का  काम किया।  गुस्से में उन्होंने कल्याणी से कहा-“आज के बाद तुम मुझसे बात न करना। 

राजा  के निर्णय से सारे सभासद चकित रह गए। कुछ ने राजा को अपना निर्णय वापस लेने की सलाह दी, लेकिन राजा ने किसी की एक न सुनी। कल्याणी उसी दिन से चुप हो गई। 

अब राजा के ऊपर रुपानी का एकाधिकार था। राजा दिन-रात,  राग-रंग  में डूबे रहने लगे। बूढ़े  सभासदों को दरबार से निकाल, उनकी जगह नौजवान एक रूपवान सभासदों की भर्ती की गई।  यहाँ तक कि राजमहल के पुराने और विश्वासपात्र दास-दासियों की भी छुटटी कर दी गई। 

इन सारी बातों की सूचना पड़ोसी राजा को मिली।  वह बड़ा खुश हुआ। उसकी वीरपुर से पुरानी दुश्मनी थी। कई बार दोनों में युद्ध हो चूका था। बदला लेने का अच्छा अवसर देख, पड़ोसी राजा ने वीरपुर पर हमला कर दिया। 

वीरपुर के राजा तो रंगरलियों में डूबे थे। सेना में भी ज़्यादातर अनुभवहीन और नए सिपाही ही थे। पुराने योग्य एवं लड़ाकू सैनिकों की छुट्टी कर दी गई थी। इसके अतिरिक्त वीरपुर से निकाले गए, बहुत-से दास-दसियों से भी बहुत-सारी गुप्त जानकारियाँ शत्रु ने प्राप्त कर ली थीं। 

हमले की ख़बर सुन, राजा छविप्रिय घबरा गए। क्या करें! सोचने लगे-“शायद  कल्याणी पुतली के नाराज होने से ही विपदा  आई है।” राजा भागे-भागे सिंहासन के पास गए।  क्षमा  माँगकर कल्याणी से उपाय पूछा।  पुतली बोली-“राजन, राग-रंग में डूबे  राजा का यही हाल होता है। अब भी भला चाहो, तो अपने पुराने सभासदों, अनुभवी मंत्रियों और भूतपूर्व सेनापति से सलाह लो। मेरी मानो, आधी रात होने पर शत्रु पर ज़ोरदार हमला करो। शत्रु आपसे कम ताकतवर है।  साहस से काम लो।'”

राजा ने वही किया। रात में अचानक हमले से शत्रु घबरा गए।  सेना के  पैर  उखड़ गए।  इस तरह आई विपत्ति टल गई।  अब राजा की समझ में आ गया कि अनुभवी सभासदों से सलाह लेना क्यों जरुरी है ? बस, उसी दिन से राजा, प्रजा के कल्याण  और राज को सुदृढ़ करने में जुट गए। पुतलियॉँ अब भी उनसे अपनी बातें कहतीं, मगर राजा उनकी बातें सुनकर अब अपने विवेक से काम लेते थे। 

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