Motivational Stories in Hindi
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Best Motivational Story Hindi
क्या आप जानते है। motivational stories पढ़ने से क्या होता है। चलो मैं आपको बताता हूँ। की motivational stories पढ़ने से हमें उन गलतियों के बारे में पता चलता है ,जो दूसरे लोगों ने की है। और भविष्य में हम वे गलती न करें। इसीलिए ज्यादा से ज्यादा Motivation Stories पढ़ने की कोशिश कीजिये
भला आदमी
एक धनी पुरुष ने एक मंदिर बनवाया। मंदिर में भगवान की पूजा करने के लिए एक पुजारी रखा। मंदिर के खर्च के लिए बहुत सी भूमि , खेत और बगीचे मंदिर के नाम लगाए। उन्होंने ऐसा प्रबंध किया था की जो मंदिर में भूखे, दीन दुःखी या साधु -संत आवें,वे वहां दो-चार दिन ठहर सकें और उनको भोजन के लिए भगवान का प्रसाद मंदिर से मिल जाया करे। अब उन्हें एक ऐसे मनुष्य की आवश्यकता हुई जो मंदिर की संपत्ति का प्रबंधन करे और मंदिर के सब कामों को ठीक-ठीक चलाता रहे।
बहुत से लोग उस धनी पुरुष के पास आये। वे लोग जानते थे, की यदि मंदिर की व्यवस्था का काम मिल जाय तो वेतन अच्छा मिलेगा। लेकिन उस धनी पुरुष ने सबको लौटा दिया। सबसे कहता था – ‘मुझे एक भला आदमी चाहिए , मैं उसको अपने-आप छाँट लूँगा।
Motivational Stories in Hindi
बहुत से लोग मन ही मन उस धनी पुरुष को गलियां देते थे। बहुत लोग उसे मुर्ख या पागल बतलाते थे। लेकिन वह धनी पुरुष किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था। जब मंदिर के पट खुलते थे और लोग भगवान् के दर्शन के लिए आने लगते थे तब वह धनी पुरुष अपने मकान की छतपर बैठा कर मंदिर में आने वाले लोगो को चुपचाप देखा करता था।
एक दिन एक मनुष्य मंदिर में दर्शन करने आया। उसके कपडे मैले और फटे हुए थे। वह बहुत पढ़ा – लिखा भी नहीं जाना पड़ता था। जब वह भगवान् का दर्शन करके जाने लगा तब धनी पुरुष ने उसे अपने पास बुलाया और कहा —-‘ क्या आप इस मंदिर की व्यवस्था संभालने का काम स्वीकार करेंगे?
वह मनुष्य बड़े आश्चर्य में पड़ गया। कहा –‘ मैं तो बहुत पढ़ा – लिखा नहीं हूँ। मैं इतने बड़े मंदिर का प्रबंध कैसे कर सकूँगा ?”
धनी पुरुष ने कहा — ‘ मुझे बहुत विद्वान नहीं चाहिए। मैं तो एक भले आदमी को मंदिर का प्रबंधक बनाना चाहता हूँ।’
उस मनुष्य ने कहा —- आपने इतने मनुष्यों में मुझे ही क्यों भला आदमी माना ?”
धनी पुरुष बोला – ” मैं जनता हूँ की आप भले आदमी हैं। मंदिर के रास्ते में एक ईंट का टुकड़ा गड़ा रह गया था और उसका एक कोना ऊपर निकला था। मैं इधर बहुत दिनों से देखता था की उस ईंट के टुकड़े की नोक से लोगो को ठोकर लगाती थी। लोग गिरते थे, लुढ़कते थे और उठकर चल देते थे। आपको उस टुकड़े से ठोकर लगी नहीं ; किन्तु आपने उसे देखकर ही उखाड़ देने का यत्न किया। मैं देख रहा था कि आप मेरे मजदूर से फावड़ा मांगकर ले गए और उस दुकड़े को खोदकर आपने वहाँ की भूमि भी बराबर कर दी।’
उस मनुष्य ने कहा – ‘ यह तो कोई बात नहीं है। रास्ते में पड़े काँटे , कंकड़ और ठोकर लगने योग्य पत्थर , ईंटो को हटा देना तो प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। ‘
धनी पुरुष ने कहा – ‘ अपने कर्तव्य को जानने और पालन करने वाले लोग ही भले आदमी होते हैं।’
वह मनुष्य मंदिर का प्रबंधक बन गया। उसने मंदिर का बड़ा सुन्दर प्रबंध किया।
सच्चा लकड़हारा
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एक गाँव में मंगल नाम का एक लकड़हारा रहता था। मंगल बहुत सीधा और सच्चा था। वह बहुत गरीब था। दिनभर जंगल में सुखी लकड़ी काटता और शाम होने पर उनका गट्ठा बाँधकर बाजार जाता। लकड़ियों को बेचने पर जो पैसे मिलते थे, उनसे वह आटा , नमक आदि खरीदकर घर लौट आता था। उसे अपने परिश्रम की कमाई पर पूरा संतोष था।
एक दिन मंगल लकड़ी कटाने जंगल में गया। एक नदी के किनारे एक पेड़ की सुखी डाल कटाने वह पेड़पर चढ़ गया। डाल काटते समय उसकी कुल्हाड़ी लकड़ी से ढीली होकर निकल गयी और नदी में गिर गयी। मंगल पेड़ पर से उतर आया। नदी के पानी में उसने कई बार डुबकी लगायी ; किन्तु उसे अपनी कुल्हाड़ी नहीं मिली। मंगल दुखी होकर नदी के किनारे दोनों हांथो से सिर पकड़ कर बैठ गया। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। उसके पास दूसरी कुल्हाड़ी खरीदने को पैसे नहीं थे। कुल्हाड़ी के बिना वह अपना और अपने परिवार का पालन कैसे करेगा , यह बड़ी भारी चिंता उसे सता रही थी।
वन के देवता को मंगल पर दया आ गयी। वे बालक का रूप धारण करके प्रकट हो गए और बोले –‘भाई! तुम क्यों रो रहे हो ?’
मंगल ने उन्हें प्रणाम किया और कहा – ‘ मेरी कुल्हाड़ी पानी में गिर गयी। अब मैं लकड़ी कैसे काटूंगा और अपने बाल-बच्चो का पेट कैसे भरूंगा ?’
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देवता ने कहा – ‘रोओ मत ! मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी निकाल देता हूँ। ‘
देवता ने पानी में डुबकी लगायी और एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर निकले। उन्होंने कहा – ‘तुम अपनी कुल्हाड़ी लो। ‘
मंगल ने सर उठाकर देखा और कहा – ‘ यह तो किसी बड़े आदमी की कुल्हाड़ी है। मैं गरीब आदमी हूँ। मेरे पास कुल्हाड़ी बनाने के लिए सोना कहाँ से आयेगा। यह तो सोने के कुल्हाड़ी है। ‘
देवता ने दूसरी बार फिर डुबकी लगायी और चांदी की कुल्हाड़ी निकालकर वे मंगल को देने लगे। मंगल ने कहा – ‘महाराज ! मेरे भाग्य खोटे हैं। आपने मेरे लिए बहुत कष्ट उठाया, पर मेरी कुल्हाड़ी नहीं मिली। मेरी कुल्हाड़ी तो साधारण लोहे की है। ‘
देवता ने तीसरी बार डुबकी लगाकर मंगल की लोहे की कुल्हाड़ी निकाल दी। मंगल प्रसन्न हो गया। उसने धन्यवाद देकर अपनी कुल्हाड़ी ले ली। देवता मंगल की सच्चाई और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुए। वे बोले – ‘ मैं तुम्हारी सच्चाई से प्रसन्न हूँ। तुम ये दोनों कुल्हाड़ियाँ भी ले जाओ। ‘
सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी पाकर मंगल धनी हो गया। वह अब लकड़ी काटने नहीं जाता था। उसके पड़ोसी घुरहू ने मंगल से पूछा कि ‘तुम अब क्यों लकड़ी काटने नहीं जाते ?’
सीधे स्वभाव के मंगल ने सब बातें सच -सच बता दीं। लालची घुरहू सोने – चाँदी की कुल्हाड़ी के लोभ से दूसरे दिन अपनी कुल्हाड़ी लेकर उसी जंगल में गया। उसने उसी पेड़पर लकड़ी काटना प्रारम्भ किया। जान – बूझकर अपने कुल्हाड़ी उसने नदी में गिरा दी और पेड़ से नीचे उतरकर रोने लगा।
वन के देवता घुरहू के लालच का दण्ड देने के लिए फिर से प्रकट हुए। घुरहू से पूछकर उन्होंने नदी में डुबकी लगाकर सोने की कुल्हाड़ी निकाली। सोने की कुल्हाड़ी देखते ही घुरहू चिल्ला उठा – ‘यही मेरी कुल्हाड़ी है। ‘
वन के देवता ने कहा – ‘तू झूठ बोलता है ,यह तेरी कुल्हाड़ी नहीं है।’ देवता ने वह कुल्हाड़ी पानी में फेंक दी और वे अद्र्श्य हो गये। लालच में पड़ने से घुरहू की अपनी कुल्हाड़ी भी खोयी गयी। वह रोता – पछताता घर लौट आया।
Finally आप कहानी के अंत तक पहुँच गए। मैं आशा करता हूँ। कि आपको भी यह motivational story अच्छी लगी होगी।अगर अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ whatsapp ,facebook पर जरूर शेयर कीजियेगा। और अगर और motivational story पढ़ना चाहते हैं तो हैं तो Read More पर click कीजिये। और इन्जॉय कीजिये।