Short Moral Story In Hindi
Welcome Guys, आज हम आपके लिए दो इतनी प्यारी कहानियाँ लेके आये है। जिनको पढ़ने के बाद आप कहेंगे वाह क्या कहानियाँ थी। तो आप अपना बिना समय गवाय कहानियों को पढ़ना शुरू कीजिये। हमारी बातें तो फिर कभी होती रहेंगी। लेकिन आज आप अपने क़ीमती समय को इन दो कहानियों को पढ़ने में लगाइये तो चलिये अब आप शुरू कीजिये। और हां कहानी के अंत में Comment करके बताना मत भूलना की कहानी कैसी थी। चलिए शुरू कीजिये।
चिड़िया की आवाज़
बहुत वर्ष पहले अवध के एक छोटे-से राज्य में एक प्रतापी राजा राज्य करता था। वह प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय था। उसे प्रकृति से बहुत प्रेम था। उसका बगीचा बहुत सुन्दर था। दूर-दूर से वृक्ष मंगाकर उसने अपने उपवन को नंदन वन सा बना रखा था। उसके बाग़ में एक बबूल का वृक्ष था। इधर कुछ दिनों से उस पर एक नन्हीं चिड़िया आकर बैठती थी। रात के प्रथम प्रहर से अंतिम प्रहर तक वह कुछ पंक्तियाँ को बार-बार दोहराती थी। राजा पक्षियों की बोली समझता था। रात के प्रथम प्रहर में चिड़िया कहती-“अरे किस मुख से दूध डालूँ। अरे, आकर मुझे कोई बताए न ?”
रात के दूसरे प्रहर में वह बार-बार कहती-“इस जैसा कहीं नहीं देखा।’ रात के तीसरे प्रहर में दुखी और उदास स्वर में कहती-‘अब हम क्या करें ? बताओ न हम क्या करें ?’
राजा हर रात चिड़िया की बातें सुन-सुनकर चिंताग्रस्त हो गया।
वह हर पल उन बातों का अर्थ निकालने का प्रयास करता। नन्हीं सी चिड़िया ने उसके मन की शांति छीन ली थी। एक दिन उसने अपने कुल पुरोहित को बुलवाया जो कि अत्यधिक विद्वान थे। राजा ने उन्हें उस नन्हीं चिड़िया के सारे वाक्य सुनाए। कहा कि वह उनका अर्थ समझाएँ। पुरोहित जी भी चकित रह गए। उन्होंने महाराज से चौबीस घंटे का समय माँगा और घर चले आए।
पुरोहित जी को उदास मुँह लौटते हुए देखकर उनकी पत्नी चिंतित हो उठीं। वह तो जब भी राजमहल से लौटते, बड़ी उमंग और उत्साह में होते थे। राजा की इन पर विशेष कृपा थी। उनके पास महल, दास-दासियाँ, हीरे-जवाहरात, सभी कुछ तो था। पत्नी ने उनसे पूछा-“क्या बात है ? आज आप उदास क्यों हैं ? राजमहल में सब आनंद से तो हैं न ?”
“विपत्ति आने वाली है। महल, वैभव, धन-सम्पत्ति सब कुछ छिन जाएगा, मैं राजा के प्रश्नों का उत्तर न दे सकूँगा।”-पुरोहित जी ने परेशान होकर कहा।
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“ऐसे कौन से प्रश्न हैं जिनका उत्तर देने में आप असमर्थ हैं। मुझे भी बताएँ। शायद में कोई हल ख़ोज सकूँ।”-पुरोहित की पत्नी शांति ने कहा।
पुरोहित जी ने विस्तार से सब कुछ बताया। उस नन्हीं चिड़िया की बातों का क्या अर्थ निकलता है, यह कोई भी नहीं जान पा रहा है। शांति ने उन्हें आश्वासन दिया-“महाराज से कहिएगा कि कल राजसभा में उन प्रश्नों का उत्तर मेरी पत्नी देगी। महाराज बिल्कुल चिंता न करें।”
दूसरे दिन पुरोहित जी ने महाराज को अपनी पत्नी का सन्देश दिया। राजा ने शांति को बुलाने के लिए पालकी भेजी। राज दरबार में रात के समय एक विशेष सभा का आयोजन किया गया। एक पर्दे की आड़ में पुरोहित जी की पत्नी के बैठने की व्यवस्था की गई।
रात के प्रथम प्रहर में चिड़िया ने कहना प्रारंभ किया-“किस मुख में दूध डालूं ?” महाराज ने इसका अर्थ पूछा तो शांति ने कहा-“महाराज, यह चिड़िया आधी बात ही कहती है। पूरी बात यह है कि रावण के दस सिर थे। उसकी माँ जब अपने पुत्र के दस सिर देखती तो चिंता में पड़ जाती। कहती-‘कौन से मुख में दूध डालूं ?’ राजा पुरोहित जी की पत्नी शांति की बात सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उत्तर ठीक था।
जब रात के दूसरे प्रहर में चिड़िया ने फिर बोलना शुरू किया-‘ऐसा कहीं नहीं देखा।’ शांति ने बताया-“यह चिड़िया सभी दिशाओं में भ्रमण करती है। बहुत-से स्थानों पर यह घूमकर आई है लेकिन इसका कहना है कि सम्पूर्ण विश्व में एक जम्बूद्वीप ही ऐसा है, जहाँ समृद्धि, सुख और शांति है। यहाँ मनुष्य को किसी प्रकार की चिंता नहीं सताती। ऐसा इसने कहीं नहीं देखा।” राजा को शांति की दूसरी बात पर भी विश्वास हो गया।
तीसरे प्रहर चिड़िया ने कहा-‘अब हम क्या करें ?’ यह सुन शांति बोली-“महाराज, हमारे यहाँ छोटी उम्र की लड़कियों का विवाह बड़ी उम्र के आदमियों से कर दिया जाता है। ऐसे विवाहों को देखकर ही यह चड़िया कहती है-‘अब हम क्या करें।”
यह सुन, राजा स्तब्ध रह गया। सचमुच बहुत-से परिवारों में ऐसा ही होता है। राजा शांति के अद्भुत ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ।
राजसभा में भी सब उसकी प्रशंसा कर रहे थे। रात बीत चुकी थी। राजा को उस बुद्धिमान चिड़िया के प्रश्नों का उत्तर चतुर पुरोहितानी द्वारा मिल गया था। वह उससे अत्यंत प्रभावित था। अथाह धन-दौलत और सम्मान के साथ उसने पुरोहित और उसकी पत्नी शांति को विदा किया।
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पेड़ बन जाओ
काशी के विश्वनाथ मंदिर में भरत मुनि नाम के परम सिद्ध महात्मा रहते थे। एक दिन उन्हें तपोवन सीमा में स्थित देवताओं के दर्शन की इच्छा हुई। वह सुबह भ्रमण को निकल गए।
दोपहर में उन्हें थकान का अनुभव हुआ। पास ही बेर के दो वृक्ष थे। उन्हीं की छाया में वह विश्राम करने लगे। एक वृक्ष के नीचे उन्होंने सिर रखा और दूसरे की जड़ में पैर टिका दिए। थोड़ी देर विश्राम के बाद तपस्वी वहाँ से चले गए। बैर के दोनों वृक्ष एक सप्ताह के भीतर सुख गए।
सूखने के बाद दोनों वृक्ष एक ब्राह्मण के घर दो कन्याओं के रूप में पैदा हुए। जन्म के कुछ वर्ष बाद भरत मुनि ब्राह्मण के घर के सामने से निकले। उन्हें देखते ही दोनों लड़कियाँ उनके चरणों में गिर गई। बोलीं-“महात्मा जी, आपकी कृपा से हमारा उद्धार हुआ है। हमने पेड़ की जीवन त्याग मनुष्य देह (शरीर) प्राप्त की है।”
मुनि की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उन्होंने विस्मय (आश्चर्य) से पूछा-“पुत्रियों, मैंने कब, किस तरह तुम पर कृपा की ?मुझे तो इस विषय में कुछ पता नहीं है !”
यह सुन, दोनों लड़कियों ने कहा-“पहले हम दोनों देवराज इन्द्र की अप्सराएँ थीं। गोदावरी नदी के तट पर चित्रपाप नामक पवित्र तीर्थ है। वहाँ सत्यतापा मुनि कठोर तपस्या कर रहे थे। इन्द्र मुनि कि तपस्या से विचलित हो गए। हमें आदेश दिया कि मुनि की तपस्या में विध्न डालें।
“बस हम दोनों वहाँ जाकर नृत्य करने लगीं। इससे मुनि का ध्यान भंग हो गया। वह क्रोधित हो उठे। उन्होंने शाप दिया-‘तुम दोनों पेड़ बन जाओ।’ इस पर हम उसने क्षमा माँगने लगे।
“महात्मा जी का हृदय पसीज गया। उन्होंने कहा-“मैं अपना शाप वापिस तो नहीं ले सकता लेकिन मैं तुम्हें शाप मुक्ति का रास्ता बताता हूँ। शाप भरत मुनि के आने तक रहेगा। उसके बाद तुम नारी रूप में जन्म लोगी और बाद में देवलोक जा सकोगी।”
लड़कियों की बात सुनकर भरत मुनि ने उन्हें आशीर्वाद दिया और अपनी राह चले गए। दोनों कन्याएँ कुछ समय बाद देवलोक चली गई।
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