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Home»कहानियाँ»Short Stories In Hindi With Morals नैतिक कहानियाँ
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Short Stories In Hindi With Morals नैतिक कहानियाँ

Shivam KasyapBy Shivam KasyapMay 23, 2021No Comments5 Mins Read
Short Stories In Hindi With Morals
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Short Stories In Hindi With Morals

ब्रह्मा जी के थैले

इस संसार को बनाने वाले ब्रह्मा जी ने एक बार मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूछा – ‘तुम क्या चाहते हो ?’

मनुष्य ने कहा – ‘मैं उन्नति करना चाहता हूँ, सुख – शान्ति चाहता हूँ, और चाहता हूँ, कि सब लोग मेरी प्रशंसा करें। ‘

ब्रह्मा जी  ने मनुष्य के सामने दो थैले धर दिये। वे बोले – ‘इन थैलों  को ले लो। इनमें एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयाँ भरी हैं।  उसे पीठपर लाद  लो।  उसे सदा बंद रखना।  न तुम देखना न दूसरे को दिखाना।  दूसरे थैले में तुम्हारे दोष भरे हैं।  उसे सामने लटका लो और बार – बार खोलकर देखा करो।

मनुष्य ने दोनों थैले उठा लिये।  लेकिन उससे एक भूल हो गयी।   उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठपर लाद लिया और उसका मुँह कसकर बंद कर दिया।  अपने पड़ोसी की बुराइयों से भरा थैला उसने सामने लटका लिया। उसका मुँह खोलकर वह उसे देखता रहता है  और दूसरों को भी दिखाता रहता है।  इससे उसने जो वरदान माँगे थे,वे भी उल्टे हो गये।  वह अवनति करने लगा।  उसे दुःख और अशांति मिलने लगी।  सब लोग उसे बुरा बताने लगे।

तुम मनुष्य की वह भूल सुधार लो तो तुम्हारी उन्नति होगी। तुम्हें सुख – शांति मिलेगी। जगत में तुम्हारी प्रशंसा होगी। तुम्हें करना यह है कि अपने पड़ोसी और परिचितों के दोष देखना बंद कर दो और अपने दोषों पर सदा दृष्टि रखो।

Short Stories In Hindi With Morals

सच्ची जीत

एक गांव में एक किसान रहता था उसका नाम था शेरसिंह, शेरसिंह शेर जैसा भयंकर और अभिमानी था, वह थोड़ी सी बात पर बिगड़ कर लड़ाई कर लेता था।  गांव के लोगों से सीधे मुंह बात नहीं करता था ना तो वह किसी के घर जाता था और ना रास्ते में मिलने पर किसी को प्रणाम करता था गांव के किसान भी उसे अहंकारी समझ कर उससे नहीं बोलते थे। 

उसी गांव में एक दयाराम नाम का किसान आकर बस गया वह बहुत सीधा और भला आदमी था। सबसे नम्रता से बोलता था। सब की कुछ ना कुछ सहायता किया करता था। सभी किसान उसका आदर करते थे और अपने कामों में उसकी सलाह लिया करते थे। गांव के किसानों  ने दयाराम से कहा – ‘भाई दयाराम! तुम कभी शेरसिंह के घर मत जाना। उससे दूर ही रहना। वह बहुत झगड़ालू है।

दयाराम ने हंसकर कहा  – ‘शेरसिंह ने मुझसे झगड़ा किया तो मैं उसे मार ही डालूंगा। 

दूसरे किसान भी हंस पड़े। वे जानते थे कि दयाराम बहुत दयालु है। वह किसी को मारना तो दूर, किसी को गाली तक नहीं दे सकता। लेकिन यह बात किसी ने शेरसिंह से कह दी। शेरसिंह को क्रोध से लाल हो गया है। वह उसी दिन से दयाराम से झगड़ने की चेष्टा करने लगा। उसने दयाराम के खेत में अपने बैल छोड़ दिए। बैल बहुत – सा खेत चर  गए; किंतु दयाराम ने उन्हें चुपचाप खेत से हाँक दिया।

शेरसिंह ने दयाराम के खेत में जाने वाली पानी की नाली तोड़ दी। पानी बहने लगा। दयाराम  ने आकर चुपचाप नाली बाँध दी। इसी प्रकार शेरसिंह बराबर दयाराम की हानि करता रहा; किंतु दयाराम ने एक बार भी उसे झगड़ने का अवसर नहीं दिया। 

एक दिन दयाराम के यहां उनके संबंधी ने लखनऊ के मीठे तरबूज भेजे। दयाराम ने सभी किसानों के घर एक – एक  खरबूजा भेज दिया; लेकिन शेरसिंह ने उसका खरबूजा यह कहकर लौटा दिया कि ‘मैं भिखमंगा नहीं हूं। मैं दूसरों का का दान नहीं लेता। ‘

बरसात आयी। शेरसिंह एक गाड़ी अनाज भर कर दूसरे गांव से आ रहा था। रास्ते में एक नाले के कीचड़ में उसकी गाड़ी फँस गयी।  शेरसिंह के बैल दुबले थे। वे गाड़ी को कीचड़ में से निकाल नहीं सके। जब गांव में इस बात की खबर पहुंची तो सब लोग बोले  — ‘शेरसिंह बड़ा दुष्ट है।  उसे रात भर नाले में पड़े रहने दो।’
लेकिन दयाराम ने अपने बलवान बैल पकड़े और नाले की ओर चल पड़ा। लोगों ने उसे रोका और कहा — ‘दयाराम! शेरसिंह ने तुम्हारी बहुत हानि की है। तुम तो कहते थे कि मुझसे लड़ेगा तो उसे मार ही डालूंगा। फिर तुम आज उसकी सहायता करने क्यों जाते हो ?’

दयाराम बोला –‘ मैं आज सचमुच उसे मार डालूंगा। तुम लोग सवेरे उसे देखना।’

जब शेरसिंह ने दयाराम कोबैल लेकर आते देखा तो गर्व से बोला –‘तुम अपनेबैल लेकर लौट जाओ। मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिए। ‘

दयाराम ने कहा — ‘तुम्हारे मन में आवे तो गाली दो, मन में आवे मुझे मारो, इस समय तुम संकट में हो। तुम्हारी गाड़ी फँसी है और रात होने वाली है। मैं तुम्हारी बात इस समय नहीं मान सकता। ‘

दयाराम ने शेरसिंह के बैलों को खोलकर अपने बैल गाड़ी में जोत दिये। उसके बलवान बैलों ने गाड़ी को खींचकर नाले से बाहर कर दिया। शेरसिंह गाड़ी लेकर घर आ गया। उसका दुष्ट स्वभाव  उसी दिन से बदल गया वह कहता था –‘दयाराम ने अपने उपकार के द्वारा मुझे मार ही दिया।  अब मैं वह अहंकारी शेरसिंह कहां रहा। ‘अब वह सबसे नम्रता और प्रेम का व्यवहार करने लगा। बुराई को भलाई से जीतना ही सच्ची जीत है। दयाराम ने सच्ची जीत पायी।’

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