Short Story Hindi/Short story in Hindi/Honest Stories/Motibation Stories सच्चाई और ईमादारी से जुड़ी कहानियाँ
बालिका विक्टोरिया की सच्चाई
बचपन में ही माता-पिता ने विक्टोरिया को उत्तम गुणी एवं शीलवती बनाने का पूरा प्रयत्न किया था। राजकुल में विक्टोरिया ही एकमात्र संतान थी, अतः इंग्लैण्ड का राजमुकुट उसके सिर को भूषित करेगा, यह पहले से निश्चित था। यह प्रयत्न बड़ी सावधानी से माता लुइसा करती थीं कि उनकी पुत्री में कोई दुर्गुण न आने पाये। विक्टोरिया को खर्च के लिये सप्ताह में एक निश्चित रकम मिलती थी। विक्टोरिया उसके प्रायः खिलौने खरीदकर साथी बच्चों को बाँट दिया करती थी। माता ने उसे कह रखा था कि किसी से कर्ज या उधार नहीं लेना चाहिये।
एक दिन अपनी आठ वर्ष की अवस्था में विक्टोरिया अपनी शिक्षिका के साथ बाजार गयी। खिलौनों की दुकानपर जाकर उसने एक छोटा-सा सुन्दर बॉक्स पसंद किया। उसके पैसे शिक्षिका के पास रहते थे। शिक्षिका ने बताया कि इस सप्ताह के पैसे समाप्त हो गए हैं। दुकानदार ने कहा–‘आप बॉक्स ले जाइये, पैसे पीछे आ जायेंगे।’
बालिका विक्टोरिया ने कहा–‘मैं उधार नहीं लूंगी। मेरी माता ने मुझे मना कर रखा है। आप बॉक्स अलग रख दें। अगले सप्ताह जब मुझे पैसे मिलेंगे, मैं उसे ले जाऊंगी। ‘ एक सप्ताह बाद पैसे मिलने पर विक्टोरिया ने जाकर वह बॉक्स खरीद लिया।
एक दिन विक्टोरिया का मन पढ़ने में नहीं लग रहा था। उसकी शिक्षिका ने कहा–‘थोड़ा पढ़ लो। मैं जल्दी छुट्टी दे दूँगी।’
बालिका ने कहा–‘आज मैं नहीं पढूंगी।’
शिक्षिका बोली–‘मेरी बात मान लो।’
बालिका मचल गयी–‘मैं नहीं पढूंगी।’
माता लुइसा ने यह सुन लिया और पर्दा उठाकर उस कमरे में आ गयीं और पुत्री को डाँटने लगीं–‘क्या बकती है।’
शिक्षिका ने कहा–‘आप नाराज न हों, राजकुमारी ने एक बार मेरी बात नहीं सुनी है।’
बालिका विक्टोरिया ने तुरंत शिक्षिका का हाथ पकड़कर कहा–‘आपको याद नहीं है, मैंने दो बार आपकी बात नहीं मानी है।’
बचपन का यह उदार, स्थिर एवं सत्य के पालन का स्वभाव ही था कि अपने राज्यकाल में महारानी विक्टोरिया इतनी विख्यात तथा प्रजाप्रिय हो सकीं।
साग-सब्जी वाले लड़के की सच्चाई
किसी बाजार में एक लड़का साग-सब्जी की दूकान लगाकर बैठा था और उसके पड़ोस में एक दूसरा लड़का भी साग-सब्जी बेचता था। एक दिन दोपहर को एक आदमी पहले लड़के की दुकान पर आकर एक बड़ा तरबूज हाथ में लेकर बोला–‘यह तरबूज अच्छा है ?’ लड़के ने जवाब देते हुए कहा–‘महाशय जी ! देखने में तो अच्छा जान पड़ता है;पर वह सड़ा और फीका है।’ इससे उस आदमी ने दूसरे की दुकानपर जाने के पहले उस लड़के से कहा–‘तू ईमानदार है, इससे तेरी बिक्री नहीं होगी।’
लड़के ने जवाब दिया–‘मैं सच-सच कहकर बेचूँगा, लेने की इच्छा होगी तो लेगा। मैं गलत नहीं बोलूँगा।’वह आदमी फिर पड़ोस की दुकानपर गया और उससे पूछा–‘लड़के ! यह ककड़ी ताजी है ?’ लड़के ने जवाब दिया–‘हाँ साहब ! ताजी है’.उस आदमी ने ककड़ी खरीद ली और वह घर गया। उसके बाद ककड़ी वाले लड़के ने उस तरबूज वाले लड़के से कहा–‘तू मुर्ख है। अपने माल के लिये ऐसा नहीं कहना चाहिये। देख,मैंने अपनी ककड़ी ताजी कहकर बेच दी; वह तो तीन दिनकी थी, फिर भी बिक गयी। अब तुझको अपना तरबूज फेंक देना पड़ेगा।’
यह सुनकर उस लड़के ने कहा–मैं कभी झूठ न बोलूँगा। नहीं बिके तो इसकी मुझे फिक्र नहीं पर मैं सच बोलता हूँ, इससे मुझ को बहुत शांति मिलती है और परमेश्वर इसका अंत में बदला देता ही है।
उस आदमी ने जब ककड़ी खायी तो मालूम हुआ कि उस लड़के ने ठग लिया है। इससे दूसरे दिन से वह उस फलवाले लड़के की दुकान से ही सब सामान लेने लगा। उस ककड़ी बेचने वाले की दूकान से वह कुछ भी नहीं लेता था। धीरे-धीरे उस साग-भाजी बेचने वाले लड़के की ईमानदारी की बात शहर में फ़ैल गयी और उसके यहाँ बहुत ग्राहक आने लगे। अंत में वह बड़ा व्यापारी हो गया और उस पड़ोसी लड़के की पहले जैसी कंगाल हालत रही।
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ईमानदार गरीब बालक
एक गरीब लड़का था। घर में उसकी माँ थी और एक छोटी बहिन। बहिन बीमार थी। वह उसकी दवा कराने के लिये अपने चाचा से कहने जा रहा था। रास्ते में उसे एक पॉकेट बुक पड़ी मिली उसमें 120 नोट थे।
लड़का बड़ा ईमानदार था। उसने अपने मन में निश्चय कर लिया कि ‘यह जिसकी पॉकेट बुक है, उसका पता लगाकर उसे जरूर दूँगा।’ उसने घर आकर अपनी माँ से सब हाल सुनाकर कहा–‘माँ ! जिस बेचारे की पॉकेट बुक खोयी है, उसको बड़ी चिंता हो रही होगी; क्योंकि इसमें उसके रुपये हैं। हम ये रुपये रख लेंगे तो बहुत पाप होगा और प्रभु हम पर नाराज होंगे; पर जिसके रुपये खोये हैं, उसका पता कैसे लगे ? माँ ! तू कोई उपाय बता, जिससे मैं उसे खोज पाऊँ।’ लड़के की माँ भी बड़ी ईमानदार थी तभी तो उसको ऐसा पुत्र हुआ। वह पुत्र की बात सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई। उसने कहा–‘बेटा !भगवान तेरी नीयत की सच्चाई इसी प्रकार दृढ़ रखें। तेरा कल्याण हो। बीटा ! किसी अख़बार में खबर देने से इसका मालिक अपने आप ही आकर ले जायेगा।’
लड़का अख़बार वाले के पास गया। उसकी नेकनीयत देखकर अख़बार वाले ने उसके नाम से यह विज्ञप्ति छाप दी–‘मुझे एक पॉकेट बुक रास्ते में मिली है, उसमे एक सौ बीस रुपये के नोट हैं। जिसकी हो, वह अमुक पतेपर आकर सबूत देकर ले जाय।’ विज्ञप्ति पढ़कर पॉकेट बुक का मालिक आया और इतनी गरीबी में भी ऐसी ईमानदारी देखकर चकित हो गया।
उसने कहा–‘जो गरीब होकर भी दूसरों के पैसों पर जी नहीं ललचाता, वही सच्चा ईमानदार है और वही प्रशंसा के योग्य है तथा सचमुच गरीब ही ऐसे ईमानदार होते हैं। पैसेवाले तो प्रायः अभाव न होनेपर भी, पैसे के लोभ में पड़कर बेईमान हो जाते हैं। तुम धन्य हो। जो इस प्रकार प्रभुपर विश्वास रखकर अपने सत्यपर डटे रहे।’ यह कहकर उसने वे नोट लड़की की दवा और सेवा के लिये आग्रह करके दे दिये और लड़के को अपने यहाँ अच्छी नौकरी दे दी। लड़का अपनी ईमानदारी के बलपर आगे चलकर नामी और धनी व्यापारी बना।
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