Short Story in Hindi with Moral
नैतिक कहानियाँ
बासा मन ताजा करो
श्रीवस्ती का मृगारि श्रेष्टि करोड़ों मुद्राओं का स्वामी था। वह मन में मुद्राएँ ही गिनता रहता था। उसे धन से ही मोह था। मुद्राएँ ही उसका जीवन थीं। उनमें ही उसके प्राण बसते थे। सोते-जागते मुद्राओं का सम्मोहन ही उसे भुलाए रहता था। संसार में और भी कोई सुख है यह उसने कभी अनुभव ही नहीं किया।
एक दिन वह भोजन के लिए बैठा। पुत्रवधु ने पश्न किया-“तात ! भोजन तो ठीक है न ? कोई त्रुटि तो नहीं रही ?” मृगारि कहने लगा-“आयुष्मति ! आज यह कैसा प्रश्न पूछ रही हो ? तुम जैसी सुयोग्य पुत्रवधु भी कहीं त्रुटि कर सकती है, तुमने तो मुझे सदैव ताजे और स्वादिष्ट व्यंजनों से तृप्त किया है।”
विशाखा ने निःश्वास छोड़ी, दृष्टि नीचे करके कहा-“आर्य ! यही तो आपका भ्रम है। मैं आज तक सदैव आपको बासी भोजन खिलाती रही हूँ। मेरी बड़ी इच्छा होती है कि आपको ताजा भोजन कराऊँ पर एषणाओं के सम्मोहन ने आप पर पूर्णाधिकार कर लिया है।
खिलाऊँ भी तो आपको उसका सुख न मिलेगा। आपका जीवन बासा हो गया है फिर मैं क्या करूं।”
मृगारि को सारे जीवन की भूल पर बड़ा पश्चाताप हुआ। अब उसने भक्तिभावना स्वीकार की और धन का सम्मोहन त्यागकर धर्म-कर्म में रूचि लेने लगा।”
भौतिकता का आकर्षण प्रायः मनुष्य की सदिच्छाओं और भावनाओं को समाप्त कर देता है। उस अवस्था में तुच्छ स्वार्थ के सिवाय जीवन की उत्कृष्टताओं से मनुष्य वंचित रह जाता है।”
संयम की शक्ति
महाभारत लिखने के लिए व्यास जी को किसी योग्य व्यक्ति की तलाश हुए। गणेश जी लिखते गए। महाभारत पूरा हुआ तो व्यास जी ने गणेश जी से कहा-“महाभाव ! मैंने 24 लाख शब्द बोल कर लिखाए, आश्चर्य है कि इस बीच आप एक शब्द भी न बोले। सर्वथा मौन बने रहे।
” गणेश जी ने उत्तर दिया-“बादरायण, बड़े काम संपन्न करने के लिए शक्ति चाहिए और शक्ति का आधार संयम है। संयम ही समस्त सिद्धियों का प्रदाता है। वाणी का संयम न रख सका होता तो आपका ग्रन्थ कैसे तैयार होता ?”
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नैतिक कहानियाँ
सच्चा आग्रह
एक व्यक्ति के घर रात को मेहमान आया। उस समय घर में खाने को कुछ न बचा था। उस व्यक्ति ने पड़ोसी का द्वार खटखटाया। लेकिन पड़ोसी ने बिछौने पर पड़े-पड़े ही कहा-“इस आधी रात के समय परेशान न करो, मैं नहीं उठ सकता।” परन्तु वह व्यक्ति भी अड़कर खड़ा हो गया।
बोला-“मैं तुम्हें चैन से नहीं सोने दूँगा। मेहमान के लिए रोटी तो देनी होगी।” अंत में उसके आग्रह के सामने पड़ोसी को किवाड़ खोलने ही पड़े। इसी प्रकार सच्चे आग्रह से भगवान का द्वार खटखटाएँ तो वे अवश्य खोलेंगे।
आत्मवत सर्वभूतेषु
संत केवलराम जी एक गाड़ीवान को उसकी गाड़ी के साथ चलते-चलते श्रीकृष्ण चरित्र कथामृत पान करा रहे थे। अचानक एक स्थान पर बैल रुक गए तो गाड़ीवान ने उनमें दो-तीन सोटे जोर से जमाए। सोटों के डर से बैल जोर से भागने लगे। गाड़ी वाले को अब संत जी का ध्यान आया,
उसने मुड़कर देखा तो वह मुर्च्छित होकर गिर पड़े थे। गाड़ीवान ने दौड़कर उन्हें उठाया और उसने देखा कि बैलों को मारे गए सोटों के निशान केवलराम जी के शरीर पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे।
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नैतिक कहानियाँ
बैद्य की आवश्यकता
महात्मा ईसा अपनी दयालुता के कारण सदा दुखी और पापी कहे जाने वाले अपराधियों से हर समय घिरे रहते। थे। यहाँ तक कि जब वे भोजन किया करते थे, तब भी बहुत से पतित लोग उन्हें घेरे रहते थे।
एक बार वे बहुत से नीच जाति के और पापी-पतितों के साथ बैठे भोजन कर रहे थे। यह देखकर एक विरोधी ने उनके शिष्य से कहा-“तेरे गुर, जिसे तुम लोग भगवान का बेटा और पवित्र आत्मा बतलाते हो, इस प्रकार नीचों और पतितों से प्रेम करता है, उनके साथ बैठा भोजन पा रहा है। फिर भला तुम लोग किस प्रकार आशा कर सकते हो कि हम लोग उसका आदर करें और उसकी बात मानें।”
महात्मा ईसा ने विरोधी की बात सुन ली और विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-“भाई बैद्य की आवश्यकता रोगियों को होती है, निरोगों को नहीं। धर्म की आवश्यकता पापियों को होती है, उनको नहीं जो पहले से ही अपने को धार्मिक समझते हैं। मैं धर्मात्माओं का नहीं पापियों का हित करना चाहता हूँ। उन्हें मेरी बहुत जरुरत है।”
कृतज्ञता प्रकाश
कुछ ग्रामीण एक साँप को मार रहे थे तभी उधर आ पहुँचे संत एकनाथ बोले-“भाईयों इसे क्यों पीट रहे हो, कर्मवश सर्प होने से क्या ?
यह भी आत्मा ही तो है।” एक युवक ने कहा-“आत्मा है तो फिर काटता क्यों है ?” एकनाथ ने कहा-“तुम लोग सर्प को न मारो तो वह तुम्हें क्यों काटेगा।” लोगों ने एकनाथ के कहने से सर्प को छोड़ दिया।
कुछ दिन पीछे एकनाथ अँधेरे में स्नान करने जा रहे थे। तभी उन्हें सामने फन फैलाए खड़ा सर्प दिखाई दिया, उन्होंने उसे बहुत हटाना चाहा पर वह टस से मस न हुआ। एकनाथ मुड़कर दूसरे घाट पर स्नान करने चले गए। उजाला होने पर लौटे तो देखा बरसात के कारण वहां एक गहरा खड्डा हो गया है। सर्प ने न बचाया होता तो एकनाथ उसमें कब के समा चुके होते।
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