Top 10 Moral Stories in Hindi | Moral हिंदी कहानियाँ
बुद्धिमानी
एक राजा था। वह बड़ा अत्याचारी था। आये दिन वह निर्दोष अपराधियों को कड़ी सजा देता था और खजाने का सारा पैसा अपनी विलासिता में खर्च कर देता था। जब आधा खजाना खाली हो जाता था तब वह प्रजा के ऊपर अन्याय करता तथा कर लगाकर पैसा वसूल करता था। राजा के
अत्याचार से प्रजा बहुत दुखी थी।
उनकी समझ में यह बात नही आ रही थी कि क्या किया जाये? चापलूस लोग भी राजा के घेरे में लगे रहते थे। अतः उस गाँव के लोग राजा से नहीं मिल पाते थे। अतः उस गाँव के लोगों ने एक दिन बैठक की, उस बैठक में सोचा गया कि राजा को किस तरह नष्ट किया जाये। सोचते-सोचते एक चालाक आदमी ने एक योजना बनाई। वह बहुत गरीब था। उसने अपने दोस्तों को बताया कि यह हो सकता है। और बहुत सरल है। उसके सभी दोस्तों ने योजना पूछी, उसने बताया और राजा के कानों तक पहुँच गयी।
योजना यह थी कि मैं सारी रात पानी में रह सकता हूँ पर शर्त है कि अगर में पानी में रहूँगा तो राजा को भी पानी में एक रात रहना होगा। राजा यह शर्त मान गया। राजा ने सोचा कि जब ये गरीब व्यक्ति सारी रात पानी में रह सकता है तो मैं क्यो न रह पाऊँगा। उसके पास तो कपड़े भी कम होंगे।
मैं उससे मोटा कपड़ा पहनकर पानी में जाऊँगा, ठण्ड का महीना है। वह मर जायेगा मैं बच जाऊँगा। अगले दिन राजा ने नदी में उसे रात भर रहने को कहा। वह राजा अपने सैनिकों को नदी के एक किनारे लगाये हुये था। जिससे वह रात में बाहर न निकले।
वह गरीब आदमी नदी के नीचे तैरता हुआ उस पार निकल गया। उस पार उसके दोस्त चारपाई विस्तर लिये हुये खड़े थे। वह गरीब व्यक्ति रात भर सोया और सुबह उठकर नदी में घुस गया और इस पार निकल आया। राजा उसे देखकर चकित रह गया कि यह नहीं मरा। अब मुझे भी नदी में घुसना पड़ेगा।
शाम हुई, उस गाँव के लोगों ने राजा से आग्रह किया कि आप पानी में घुसे, राजा तैयार होकर चल दिया। वे बहुत कपड़े पहने हुये था। नदी में राजा घुसे और गाँव के लोग नदी के दोनों तरफ देखभाल में लग गये कि राजा निकल न पाये। कुछ देर तक राजा घुसे रहे। उनके प्राण निकल रहे थे। सुबह हुई, दिन निकला। राजा नहीं निकले, प्रजा नदी में घुसकर देखने लगी तो राजा की लाश मिली। प्रजा बहुत खुश हुई और एक योग्य व्यक्ति को राजा बना दिया।
Top 10 Moral Stories in Hindi | एक वफादार तोते की कहानी
वफादार तोता
एक लकड़हारा था बिल्कुल अकेला। वह रोज जंगल जाता। लकड़ी काटकर लाता और उसे बेचकर अपना पेट भरता था। एक दिन की बात है। जंगल में उसे एक घायल तोते की आवाज सुनाई पड़ी। दरअसल तोता कंटीली झाड़ी में फंसा हुआ था। तोते को इस हाल में देखकर उसे दया आ गई। उसने बड़े प्यार से तोते को झाड़ियों से निकाला। तोता दर्द से बेचैन हुआ जा रहा था। लकड़हारे ने पहले तो उसके शरीर में चुभे हुए काँटे निकाले और फिर अपने खाने में से रोटी का टुकड़ा उसे खाने को दिया। तोते ने थोड़ा सा ही खाया और कुछ यूं ही रहने दिया।
लकड़हारे ने तोते के दर्द को देखकर लकड़ी काटने का अपना मन त्याग दिया और तोते को लेकर घर आ गया। वहाँ उसने तोते के जख्मों पर जड़ी बूटी से बनी दवाइयाँ रखकर उपचार किया और लकड़ी से बने पिंजरे में बंद कर दिया। तोता धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा। अब लकड़हारा और तोता एकदूसरे को बेहद प्यार करने लगे। लकड़हारा प्रत्येक दिन तोते को खाना देकर ही लकड़ी के लिए जंगल जाता। लकड़हारे के प्यार और स्नेह से तोता बहुत खुश था। फिर भी उसके मन में एक तरह की व्याकुलता की स्थिति बनी रहती थी। सुबह-शाम जब पक्षी आकाश में चह-चहाते उधर से गुजरते तो तोता भी उड़ान भरने के लिए अपने पंखों को पिंजरे के भीतर फड़फड़ाने लगता था।
एक दिन लकड़हारा तोते को खाना देकर पिंजरे का दरवाजा खुला छोड़कर जंगल चला गया। उधर तोते ने सोचा आज मौका है उड़ भागने का। वह सकुचाते हुए पिंजरे से निकला फिर छत पर जा बैठा। वहां वह सोचने लगा कि लकड़हारे ने मुझे एक और नया जीवन दिया है, भागना ठीक नहीं। इस उधेड़बुन के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि “आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।” मैं स्वच्छंद आकाश में विचरण करने वाला पक्षी हूँ, तो फिर पिंजरे में बंद क्यों रहूं। बस, तोता फुर्र हो गया आकाश में।
उधर लकड़हारा जब घर आया तो देखा कि पिंजरे का दरवाजा खुला है और तोता गायब। उसके होश उड़ गये। वह कुछ देर तक खाली पिंजरे को देखता रहा। मानो काटो तो खून नहीं। उसे ऐसा लग रहा था मानों उसका बेटा उसे देगा देकर भाग गया हो। वह बेचैन रहने लगा और दो दिन तक खाना नहीं खाया।
दुःख में डूबे लकड़हारे को अपने जीवन के लिए लकड़ी तो काटना ही था सो वह पुनः दूसरे दिन जंगल की ओर चल दिया। चलते-चलते वह उस स्थान पर पहुंचा जहाँ से वह घायल तोते को उठाकर घर लाया। .याद ताजा हो गयी और वह वहीं एक पेड़ के नीचे बैठकर तोते के वियोग में बिलख-बिलखकर रोने लगा। संयोग था कि वह तोता उसी समय ऊपर से गुजर रहा था। नीचे देखा तो उसे वह कंटीली झाड़ी दिखायी दी जिसमें वह फंसा था और लकड़हारा भी दिखलाई दिया जिसने उसकी जान बचाई थी। उसने सोचा एक दिन मैं यहीं दर्द से बेचैन कराह रहा था और आज मेरा जीवन दाता लकड़हारा कराह रहा है। आज मैं लकड़हारे से अवश्य मिलूंगा। इतना सोचकर वह नीचे उतरा और लकड़हारे के कंधे पर जा बैठा। लकड़हारा उसी तोते को अपनी पीठ पर बैठा पाकर खुशी से उछल पड़ा। और उसे बार-बार चूमने और सहलाने लगा। वियोग अब मिलने की मिठास में बदल गया।
लकड़हारा तोते को लेकर घर पहुंचा। अब वह लकड़हारा तोते को पिंजरे में बंद करना पसंद नहीं करता बल्कि यूं ही छोड़ देता। दोनों साथ-साथ रहते, जहाँ जाते साथ जाते, जो खाते साथ खाते। दोनों की जिंदगी मौज मस्ती में कटने लगी।
Top 10 Moral Stories in Hindi | राजा विक्रमादित्य जीवन की कहानी
सच्चा त्याग
एक समय की बात है, राजा विक्रमादित्य के राज्य में अचानक सूखा पड़ गया। शहर के सभी बड़े तालाब, कुँए आदि सुख गये। यहाँ तक कि बड़ी-बड़ी बावड़ियों में भी पानी कतई नहीं रहा।
पानी की तलाश में लोग इधर-उधर भटकने लगे मगर पानी न मिला। आखिरकार लोग शहर छोड़कर जाने लगे। यहाँ तक कि पक्षी भी उड़कर दूसरे शहर की ओर जाते हुए दिखाई दे रहे थे।
सूखे को देखकर राजा चिन्ता में पड़ गये। पानी के लिए उन्होंने काफी धन लगाया मगर सफलता हाथ न लगी।
राजा पानी की तलाश में भटक रहे थे कि एक बूढ़ा भिखारी दिखाई दिया। राजा ने अपनी दिल की बात बूढ़े बाबा से कह दी। बूढ़े बाबा ने बताया पूर्व में एक छोटी सी बावड़ी है। सूर्योदय के पहले वहाँ जाकर तू मन लगाकर कठोर तपस्या करेगा तो गंगा मैया अवश्य तुम पर प्रसन्न होंगी।
राजा ने ऐसा ही किया और सर्योदय के पहले उस बावड़ी के पास तपस्या करने लगा। जब गंगा मैया को खबर पहुंची कि उज्जैन नगर के मशहूर बुद्धिमान राजा अपनी प्रजा के सुख के लिए मुझ से पानी माँग रहे हैं, तो गंगा मैया एकदम धरती पर प्रकट हुई और बोलीं-राजा क्या चाहिए तुझे ? राजा ने पूरी बात बताई। तब गंगा मैया बोली-यह मैं तुझे एक लोटे में पानी दे रही हूँ। तू इसे पश्चिम में जाकर एक बावड़ी में डाल देता जहाँ से यह पानी सभी कुओं में पहुँच जाएगा।
राजा उस लोटे को लेकर पश्चिम की और चल पड़ा। रास्ते में उसे एक बुढ़िया पड़ी दिखाई दी। उसके मुख से सिर्फ पानी-पानी की पुकार निकल रही थी। राजा उस बुढ़िया के पास गया और बोला-माता यह ले, पानी पीले। उस बुढ़िया ने कहा-नहीं राजा तू ही पीले इसे। तुझे तो पूरी जनता की सेवा करनी है, मेरा क्या आज नहीं कल चली जाऊंगी। राजा ने कहा-नहीं माता मेरे जीते जी आप नहीं जा सकती।
यह सुनकर गंगा मैया पुनः प्रकट हो गई और बोली-राजा तुम महान हो। अब तुम्हारी प्रजा को कभी भी पानी के लिए हताश नहीं होना पड़ेगा।
उस दिन के बाद उज्जैन नगरी में किसी को भी पानी के लिये मोहताज नहीं होना पड़ा।
Top 10 Moral Stories in Hindi | चतुर बनिया
चतुर बनिया
एक बनिया था। वह बहुत कंजूस था। वह कभी दान नहीं करता था। गरीबों की कमाई से अपनी तिजोरी भरता था। उसने मरते वाक्य एक बूढ़ी गाय जो आजकल में मरने वाली थी। एक ब्राह्मण को दान करदी। बनियाँ मर गया तथा ब्राह्मण के घर पहुँचते ही वह गाय भी मर गई।
यमराज के यहाँ यमलोक में दरबार लगा। यमराज ने कहा। इस बनिये ने कभी दान धर्म नहीं किया। यह गरीबों के जीवन भर की कमाई से अपनी तिजोरी भरता रहा है। इसे नरक में भेजना चाहिए। किन्तु इसने मरते वक्त एक बूढ़ी गाय का दान किया था। सो इसे एक दिन रात बैकुण्ठ का सुख दे देते हैं। यमराज ने बनिये से पूछा कि पहले नरक भोगोगे या बैकुण्ठ का सुख।
बनिये ने कहा पहले मैं स्वर्ग का सुख भोग करूँगा। यमराज ने कहा-बनिये, इस गाय को जो तुम कहोगे यह मानेगी। बनिये ने गाय से कहा-गाय तुम इस यमराज को मारो।
गाय हुंकार भरने लगी तथा यमराज को मारने दौड़ी। यमराज भागने लगा। यमराज भागते-भागते कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर के पास पहुँचा। भगवान शंकर उसे कुछ उपाय बता भी नहीं पाये कि गाय और बनियाँ पहुँच गये। पहुँचते ही बनियाँ ने गाय से शंकर को मारने को कहा। शंकर भी यमराज के पीछे-पीछे भागने लगे। दोनों भागते-भागते ब्रह्मलोक ब्रह्मा जी के पास पहुँचे। इससे पूर्व की ब्रह्मा जी कुछ उपाय करते गाय और बनियाँ वहाँ पहुँच गये। बनियाँ के आज्ञानुसार गाय ब्रह्मा को भी मारने दौड़ी।
यमराज, शंकर व ब्रह्मा भागते-भागते विष्णु भगवान के पास पहुँचे। पीछे-पीछे गाय और बनिया भी पहुँचे, जैसे ही दोनों विष्णु भगवान के पास पहुंचे, वरदान का समय समाप्त हो गया। बनियाँ असहाय हो गया। उसकी सारी शक्ति समाप्त हो गयी। यमराज क्रोधित मुद्रा में सोटा लेकर बनिये को मारने दौड़े। भगवान विष्णु ने यमराज को रोका उन्होंने समझाते हुए तीनों से कहा भाई, जो हम तीनों देवों के दर्शन करता है वह स्वर्ग का अधिकारी होता है। बनिये की चतुराई ने उस कंजूस बनिये को भी स्वर्ग प्राप्त करा दिया।
नेकी कर दरिया में डाल
एक गाँव में रहने वाला एक बुढ़िया थी। वह दिन-रात नेकी की कोशिश करती थी। एक दिन वह एक बहुत बड़े नदी के पास जा रही थी तभी उसने देखा कि नदी में कुछ चमक रहा है। बुढ़िया ने उसे निकाल कर देखा तो उसमें बहुत से सोने के सिक्के थे। बुढ़िया ने उन्हें बचाकर घर ले आई।
बुढ़िया ने सोचा कि सोने के सिक्के उसे धनवान बना देंगे। वह सोने के सिक्कों को अपने घर में संयंत्र से पार्ट्स के रूप में निकालती थी। एक दिन उसने देखा कि उसके पड़ोसी ने बुखार से बहुत पीड़ित हो रहा है। उसने उसे अपने घर में लेकर उसे नियमित चिकित्सा दिलाई। इससे पड़ोसी बिल्कुल ठीक हो गया।
बुढ़िया ने समझा कि नेकी करने से हमें बहुत सुख मिलता है और अगले दिन से वह नदी में हर दिन नेकी करने लगी।
इस कहानी का संदेश है कि नेकी करने से हमें खुशी मिलती है और दूसरों की मदद करने से हम अपने आप को एक सच्चा इंसान बना लेते हैं।
Top 10 Moral Stories in Hindi | ईमानदारी पर Top 10 हिंदी कहानियाँ
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