एक लकड़हारा था बिल्कुल अकेला। वह रोज जंगल जाता। लकड़ी काटकर लाता और उसे बेचकर अपना पेट भरता था। एक दिन की बात है। जंगल में उसे एक घायल तोते की आवाज सुनाई पड़ी।
दरअसल तोता कंटीली झाड़ी में फंसा हुआ था। तोते को इस हाल में देखकर उसे दया आ गई। उसने बड़े प्यार से तोते को झाड़ियों से निकाला। तोता दर्द से बेचैन हुआ जा रहा था।
लकड़हारे ने पहले तो उसके शरीर में चुभे हुए काँटे निकाले और फिर अपने खाने में से रोटी का टुकड़ा उसे खाने को दिया। तोते ने थोड़ा सा ही खाया और कुछ यूं ही रहने दिया।
लकड़हारे ने तोते के दर्द को देखकर लकड़ी काटने का अपना मन त्याग दिया और तोते को लेकर घर आ गया। वहाँ उसने तोते के जख्मों पर जड़ी बूटी से बनी दवाइयाँ रखकर उपचार किया और लकड़ी से बने पिंजरे में बंद कर दिया।
तोता धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा। अब लकड़हारा और तोता एकदूसरे को बेहद प्यार करने लगे।
लकड़हारा प्रत्येक दिन तोते को खाना देकर ही लकड़ी के लिए जंगल जाता। लकड़हारे के प्यार और स्नेह से तोता बहुत खुश था। फिर भी उसके मन में एक तरह की व्याकुलता की स्थिति बनी रहती थी।
सुबह-शाम जब पक्षी आकाश में चह-चहाते उधर से गुजरते तो तोता भी उड़ान भरने के लिए अपने पंखों को पिंजरे के भीतर फड़फड़ाने लगता था।