Students And Politics Essay In Hindi/Students and Politics Hindi Essay
(Students And Politics Essay In Hindi)
विद्यार्थी और राजनीति पर निबन्ध
100, 200, 300, 500, 600
शब्दों में
विद्यार्थी और राजनीति पर निबन्ध
प्रस्तावना –
“विद्यार्थी” शब्द का अर्थ है-विद्या प्राप्त करने वाला। विद्या जीवन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है। जो व्यक्ति विद्या प्राप्त करता है, विद्यार्थी कहलाता है। विद्यार्थी-जीवन मनुष्य के जीवन का निर्माणकाल होता है। ‘राजनीति से अभिप्राय है-राजकाज चलाने की नीति। विद्यार्थी” शब्द का अर्थ है-विद्या प्राप्त करने वाला। विद्या जीवन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग है।
जो व्यक्ति विद्या प्राप्त करता है, विद्यार्थी कहलाता है। विद्यार्थी-जीवन मनुष्य के जीवन का निर्माणकाल होता है। ‘राजनीति से अभिप्राय है-राजकाज चलाने की नीति। यद्यपि प्राचीनकाल में राजनीति का क्षेत्र केवल शासकों, लेखकों, दार्शनिकों तक ही सीमित था, किन्तु वर्तमानकाल में यह काफ़ी विस्तृत हो गया है। अब इसमें शासन की प्रत्येक गतिविधि को जानने का अधिकार सर्वसाधारण को भी दिया गया है।
विद्यार्थी-जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम का ही दूसरा नाम है। विद्यार्थी विद्या का अर्थी (चाहने वाला) होता है। वह अपने इस जीवन में ज्ञान-भण्डार का विकास करता है। वह साहित्य, कला, इतिहास, गणित, मनोविज्ञान और चिकित्सा-विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषयों का अध्ययन करता है, उन्हीं विषयों में राजनीति भी एक महत्त्वपूर्ण विषय है।
विद्यार्थी और राजनीति –
आज का युग प्रजातंत्र का युग है। आज राजनीति जीवन के अधिकांश भाग को व्याप्त किए हुए हैं। आज विद्यार्थी राजनीति विषय लेकर उसका गहन अध्ययन करते हैं। उन्हें राजनितिक घटनाओं का विश्लेषण तथा तत्त्वों की गति-विधि तथा परिणामों का ज्ञान होना आवश्यक है।
विद्यार्थी जीवन –
विद्यार्थी जीवन मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ कल है। इस समय का सदुपयोग करके मनुष्य अपने जीवन को सुखदायक बनाने में सफल प्रयत्न कर सकता है। इस समय विद्यार्थी पर भोजन, वस्त्रादि की चिन्ता का कोई भार नहीं होता है। उनका मन और मस्तिष्क निर्विकार होता है। इस समय उसके शरीर और मस्तिष्क की सभी शक्तियाँ विकासोन्मुखी होती है। इस स्वर्ण काल में उसके लिए केवल एक ही कार्य होता है और वह है सम्पूर्ण प्रवृत्तियों और शक्तियों को विद्या के अर्जन की ओर लगाना।
विद्यार्थियों का राजनीति में भाग लेना उचित या अनुचित –
अब प्रश्न यह उठता है कि विद्यार्थी को राजनीति में क्रियात्मक भाग लेना चाहिए या नहीं। समाज का एक वर्ग ऐसा है जिसके विचार से विद्यार्थी को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए। छात्र को अर्जुन के समान चिड़िया के नेत्र रूपी विद्या को ही लक्ष्य बनाना चाहिए। उसे प्रतिक्षण ज्ञानार्जन की ही धुन होनी चाहिए। राजनीति रूपी डायन के पल्ले पड़कर जीवन इस प्रकार बर्बाद हो जाता है, जैसे कँटीली झाड़ियों के बीच में खड़े हुए केले के पत्ते जर्जर हो जाते हैं।
विद्यार्थी-काल भावना-प्रधान होता है। उस समय गतिविधियों का नियंत्रण मस्तिष्क नहीं करता, वरन उनका मन करता है। विद्यार्थी की राजनीति तो विद्याभ्यास ही है और विद्यालय ही उसका वर्तमान कार्य-क्षेत्र है। छात्रों को सक्रिय राजनीति से दूर रह कर ही विषय के रूप में राजनीति का ज्ञान कराया जा सकता है। ये कोमल मति छात्र कुम्हड़बतियाँ (कोमल फल) हैं, इन्हें राजनीति तर्जनी नहीं दिखानी चाहिए। विद्यार्थी पक्षी के छोटे बच्चे के समान होते हैं। इन्हें राजनीति के उन्मुक्त आकाश में उड़ने का प्रयत्न बाज के भय से नहीं करना चाहिए। विद्यार्थी को प्रारम्भ से ही राजनीति सीखने का अर्थ है कि गाय के बछड़े को जन्म लेते ही हल में जोत देना।
अन्न के अंकुरों का ही आटा पीसने का प्रयत्न कौन मुर्ख करेगा। राजनीति का कुछ सक्रिय ज्ञान महाविद्यालय के छात्रों के लिए अपेक्षित हो सकता है। परन्तु वह भी सीमित मात्रा में ही होना चाहिए; अन्यथा विश्व-विद्यालयों के छात्रों के काण्ड क्या इस राजनीति के द्वारा नहीं होते ? कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती है, जिनमें विद्यार्थियों का राजनीति में भाग लेना उचित ही नहीं, अपितु आवश्यक भी हो जाता है।
सर्वप्रथम जब देश पर कोई बाहरी आक्रमण होता है, तब देश की स्वतंत्रता खतरे में होती है। जब राष्ट्रीय गौरव एवं स्वाभिमान खतरे में होता है, देश के नागरिकों, महिलाओं एवं बच्चों का साधारण जीवन कठिन हो जाता है। उन्हें पशुवत जीवन व्यतीत करने के लिए बिवस होना पड़ता है। ऐसे कठिन समय में स्नातकों को भी अपने दायित्व को निभाते हुए साहस का प्रदर्शन करना चाहिए। बड़े-बूढ़ों को राजनीति में दूरदर्शिता अवश्य होती है; लेकिन राजनितिक क्रान्ति युवा वर्ग ही उत्पन्न कर सकता है। ये दोनों ही अपने-अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण सक्रिय तथ्य प्रस्तुत करते हैं। इसलिए विद्यार्थी को समय पड़ने पर राजनीति में सीमित रूप से भाग लेना चाहिए, अन्यथा उसे सक्रिय राजनीति से दूर रहना चाहिए।
राजनीति में भाग लेने से लाभ या हानि –
राजनीति में भाग लेने से विद्यार्थी-वर्ग को अनेक लाभ हैं। राजनीति सम्बन्धी ज्ञान रखने वाला विद्यार्थी अपने जीवन के लिए उचित मार्ग चुनने में समर्थ हो सकता है। वह देश की आर्थिक, औद्योगिक एवं सामाजिक उन्नति में सहायक सिद्ध हो सकता है। अच्छी राजनीति का ज्ञान रखने वाला विद्यार्थी आगे चलकर स्वयं भी एक अच्छा नेता बन सकता है तथा समाज में अच्छे नेताओं का चयन के लिए जनमत को जागरूक करता है। इस प्रकार राजनीति उसे दूसरे देशों की अच्छाइयाँ भी बतलाती है, जिसको अपने संविधान में लागू करके लाभ उठाया जा सकता है।
जहाँ विद्यार्थी-वर्ग को राजनीति में भाग लेने से लाभ है, वहां हानियाँ भी हैं। जब विद्यार्थी राजनीतिक कार्यों को ही अपना मुख्य उद्देश्य समझ लेता है, तो वह अपने अध्ययन के प्रति उदासीन हो जाता है। जब विद्यार्थी राजनीति में भाग लेने लगता है, तो उसका जीवन-क्रम बिगड़ जाता है। वह पथ-भ्रष्ट होकर दिनाशोन्मुख हो जाता है। उसके अंदर विद्रोह की भावनाएँ भर जाती हैं। फिर वह समाज के प्रत्येक प्राणी, यहाँ तक कि गुरुजनों से भी, झगड़ बैठता है। जहाँ गुरुओं में उसकी आस्था समाप्त हुई, वहीं उसे किसी भी विषय का पूर्ण ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता।
उपसंहार –
विद्यार्थी और राजनीति आज एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह हैं, इनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यदि छात्रों को भविष्य में राष्ट्र को नेतृत्व करना है, तो उन्हें राजनीति में प्रवेश करने से पूर्व अपनी क्षमताओं का विकास करना चाहिए। जीवन के साफल्य के लिए बौद्धिक राजनीतिक सचेतना का विकास विद्यार्थी को अपने अंदर करना चाहिए। उसे राजनीति में सक्रीय भाग नहीं लेना चाहिए; परन्तु अवसर पड़ने पर अपने देश की रक्षार्थ प्राणों की बाजी तक लगा देना चाहिए।
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