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Home»कहानियाँ»Best Short Stories Hindi | बेस्ट 5 हिन्दी कहानियाँ
कहानियाँ

Best Short Stories Hindi | बेस्ट 5 हिन्दी कहानियाँ

By Shivam KasyapOctober 16, 2021No Comments9 Mins Read
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Best Short Stories Hindi

हिन्दी में 5 ज्ञान से भरी कहानियाँ 

कहानियाँ पढ़ने के 5 फायदे 

  1. हमें दूसरों की गलतियों का पता चलता है, जिससे कि हम वो गलती ना करें। 
  2. हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार होता है। 
  3. हम पहले की अपेक्षा 50% अत्यधिक कुशलता से कार्य को कर पाते हैं। 
  4. हम सकारात्मक तरीके से सोच पाते हैं। 
  5. हम पहले की अपेक्षा 70% ज्यादा खुश रहते हैं। 

तन से बढ़कर मन का सौन्दर्य है

महाकाव्य ‘मेघदूत’ के रचयिता कालिदास ‘मुर्ख’  नाम से प्रसिद्ध हैं, जिनका विवाह सुन्दर व महान गुणवती विघोतमा से हुआ था।  उन महाकवि से राजा विक्रमादित्य ने एक दिन अपने दरबार में पूछा, ‘क्या कारण है, आपका शरीर मन और बुद्धि के अनुरूप नहीं है ?

इसके उत्तर में कालिदास ने अगले दिन दरबार में सेवक से दो घड़ों में पीने का पानी लाने को कहा। वह जल से भरा एक स्वर्ण निर्मित घड़ा और दूसरा मिट्टी का घड़ा ले आया। अब महाकवि ने राजा से विनयपूर्वक पूछा, ‘महाराज !’

आप कौनसे घड़े का जल पीना पसंद करेंगे ?’ विक्रमादित्य ने कहा, ‘कवि महोदय, यह भी कोई पूछने की बात है ? इस ज्येष्ठ मास की तपन में सबको मिट्टी के घड़े का जल भाता है।’ कालिदास मुस्कराकर बोले, ‘तब तो महाराज, आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयं ही दे दिया। 

‘राजा समझ गए कि जिस प्रकार जल की शीतलता बर्तन की सुंदरता पर निर्भर नहीं करती, उसी प्रकार मन-बुद्धि का सौन्दर्य तन की सुंदरता से नहीं आँका जाता। 

 यह है मन का सौन्दर्य, जो मनुष्य को महान बना देता है और उसका सर्वत्र सम्मान होता है।  

Best Short Stories Hindi /Best Short Stories Hindi on Honesty ईमानदारी पर कहानी 

 

 मुर्ख की सीख 

एक जंगल में एक पेड़ पर गौरेया का घोंसला था। एक दिन कड़ाके का ठंड पड़ रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन-चार बंदरों ने उसी पेड़ के नीचे आश्रय लिया। एक बन्दर बोला-“कहीं से आग तापने को मिले तो ठंड दूर हो सकती है।”

दूसरे बन्दर ने सुझाया–“देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पड़ी हैं। इन्हें इकठ्ठा कर हम ढेरी लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।”

बंदरों ने सुखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोल दायरे में बैठकर सोचने लगे कि ढेरी को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक बन्दर का नजर दूर हवा में उड़ते एक जुगनू पर पड़ी और वह उछल पड़ा।  उधर ही दौड़ता हुआ चिल्लाने लगा–“देखो, हवा में चिंगारी उड़ रही है। इसे पकड़कर ढेरी के नीचे रखकर फूंक मारने से आग सुलग जाएगी।”

“हाँ हाँ !” कहते हुए बाकी बन्दर भी उधर दौड़ने लगे। पेड़ पर अपने घोंसले में बैठी गौरेया यह सब तमाशा देख रही थी।  उससे चुप न रहा गया। वह बोली–“बन्दर भाइयों, यह चिंगारी नहीं है।  यह तो जुगनू है।”

एक बन्दर क्रोध से गौरेया की ओर देखकर गुर्राया–“मुर्ख चिड़िया, चुपचाप घोंसले में दुबकी रह। हमें सीखने चली है।”

इस बीच एक बन्दर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के बीच कटोरा बनाकर कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेरी के नीचे रख दिया गया और सारे बन्दर लगे चारों ओर से ढेरी में फूंक मारने।  गौरेया ने सलाह दी–“भाइयों ! आप लोग गलती कर रहे हैं। जुगनू से आग नहीं गुलगेगी।  दो पत्थरों को टकराकर उससे चिंगारी पैदा करके आग सुलगाइए।” बंदरों ने गौरेया को घूरा।  आग नहीं सुलगी तो गौरेया फिर बोल उठी–“भाइयो !

आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सुखी लकड़ियों को आपस में रगड़कर देखिए।” सारे बन्दर आग न सुलगा पाने के कारण खोजे हुए थे। एक बन्दर क्रोध से भरकर आगे बढ़ा और उसने गौरेया को पकड़कर जोर से पेड़ के तने पर दे मारा। गौरेया फड़फड़ाती हुए नीचे गिरी और मर गई। 

 सीख : मूर्खों को सीख देने का कोई लाभ नहीं होता। उल्टे सीख देने वाले को ही पछताना पड़ता है।  

Best Short Stories Hindi सफलता के बेस्ट कोट्स 

दुःख-दर्द की माँग 

महाराज रन्तिदेव मनु के वंश में उत्पन्न हुए थे, इनके पिता का नाम सुकृति था।  महाराज रन्तिदेव में मानवता कूट-कूट कर भरी हुई थी। ये प्राणिमात्र में भगवान को देखा करते थे। सभी के लिए इसके हृदय में करुणा का सागर सदा लहराता रहता था।

दैवयोग से इनका परिवार भी इन्हीं की तरह उदार बन गया था। परिवार का प्रत्येक सदस्य न खा-पीकर दूसरे के खिलाने का भी अभ्यस्त हो गया था।  अपने दुःख-दर्द का उन्हें कभी ध्यान न होता था। दूसरे के दुःख-दर्द मिटाने से ही उन्हें संतोष होता था।

एक बार पुरे परिवार को अड़तालीस (48) दिन तक कंगाली से रहना पड़ा। किसी को जलतक नहीं मिला था। भूख और प्यास से परिवार काँप रहा था। संयोग से उन्हें उनचासवें (49) दिन प्रातःकाल ही थोड़ा-सा खीर-हलवा मिला। ज्यों ही उन लोगों ने भोजन करना चाहा, त्यों ही अतिथि के रूप में एक ब्राह्मण आ गया। अतिथि को आया देख लोग संतुष्ट हो गये।

मानो उनकी भूख-प्यास ही मिट गयी। बड़ी श्रद्धा और आदर से उन्होंने अतिथि ब्राह्मण को भोजन कराया।  ब्राह्मण देवता के चले जाने के बाद बचे हुए अन्न को रन्तिदेव ने आपस में बाँट लिया। 

ज्यों ही उन्होंने भोजन करना चाहा, त्यों ही एक शूद्र अतिथि आ गया। रन्तिदेव ने इस अतिथि को भी पूर्ण संतुष्ट किया, उन्हें मालूम पड़ा कि भगवान ने ही उनका भोजन कर लिया है। वे भगवान के स्निग्ध स्मरण में विभोर हो गये।

शूद्र अतिथि के जाते ही वहाँ एक अतिथि और आ गया। उसके पास बहुत-से कुत्ते थे।  उसने कहा-“मैं बहुत भूखा हूँ, मेरे कुत्ते भी बहुत भूखे हैं। कुछ खाने को दीजिये।’ रन्तिदेव ने जो कुछ बचा था, सब-का-सब उस भूखे अतिथि को दे दिया। और भगवन्मय कुत्तों और अतिथि को प्रेम से प्रणाम किया। अब केवल जल बच रहा था, वह भी केवल एक ही व्यक्ति के पीने भर के लिये था। 

वे आपस में बाँटकर उस जल को पीना ही चाह रहे थे कि चाण्डाल की वाणी करुणा से भरी हुई थी। मानो प्यास के कारण उसके मुख से बोली नहीं निकल रही थी। उसकी दशा देखकर रन्तिदेव का हृदय दया से भर गया। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि ‘भगवन ! मुझे सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित कर दो, जिससे उनका सब दुःख-दर्द मैं ही झेल लूँ और वे सुखी बने रहें।’

जल पीने से बेचारे के जीवन की रक्षा हो गयी।  महाराज के भूख-प्यास की पीड़ा, शिथिलता, दीनता, मोह आदि सब जाते रहे। मानवता के इतिहास में यह अनूठी घटना है। इस गाथा को लोक और परलोक में आज भी लोग आदर से गाते हैं।  महाराज रन्तिदेव ने मानवता के मस्तक को ऊँचा किया है। भारत को उनपर गर्व है। 

Best Short Stories Hindi /सच्चे और ईमानदार बालकों की सच्ची कहानियाँ 

बाघ और लोमड़ी 

एक दिन जंगल में बाघ को पकड़ने एक शिकारी आया। उसने गुफा से थोड़ी दूर पर एक गहरा गड्ढा खोदकर, उसे घास-फूस से ढक दिया।  शिकारी पेड़ से नीचे जाकर सो गया। बाघ जब शिकार के लिए निकला तो उस गड्ढे में गिर गया।

एक लोमड़ी उधर से गुजर रही थी।  उसने देखा कि बाघ मुसीबत में है। वह बाघ को बचाने का उपाय सोचने लगी। शिकारी गहरी नींद में सोया हुआ था। उसके पास एक रस्सी रखी थी।  लोमड़ी ने रस्सी का एक सिरा पेड़ से बाँध दिया। और दूसरा सिरा उसने गड्ढे में फेंक दिया और बाघ से कहा, ” कि रस्सी पकड़ कर ऊपर आ जाओ। 

बाघ रस्सी के सहारे ऊपर आ गया। शिकारी की आँख खुलने से पहले ही दोनों वहां से नौ दो ग्यारह हो गये। 

Best Short Stories Hindi संदीप माहेश्वरी के अनमोल कोट्स 

मक्खीचूस गीदङ 

जंगल में एक गीदङ रहता था। वह बड़ा कंजूस था। क्योंकि वह एक जंगली जीव था इसलिए हम रूपए-पैसों की कंजूसी की बात नहीं कर रहे। वह कंजूसी अपने शिकार को खाने में करता। जितने शिकार से दूसरा गीदङ दो दिन काम चलाता, वह उतने ही शिकार को सात दिन तक खींचता।  जैसे उसने एक खरगोश का शिकार किया।

पहले दिन वह एक ही कान खाता।  बाकी बचाकर रखता।  दूसरे दिन दूसरा कान खाता।  ठीक वैसे जैसे कंजूस व्यक्ति पैसा घिस-घिसकर खर्च करता है। गीदड़ अपने पेट की कंजूसी करता।  इस चक्कर में वह प्रायः भूखा रह जाता। इसलिए दुर्बल भी बहुत हो गया था। 

एक बार उसे एक मरा हुआ बारहसिंगा हिरण मिला। वह उसे खींचकर अपनी मांद में ले गया। उसने पहले हिरण के सींग खाने का फैसला किया ताकि मांस बचा रहे। कई दिन वह बस सींग चबाता रहा। इस बीच हिरण का मांस सड़ गया और वह केवल गिद्धों के खाने लायक रह गया। इस प्रकार मक्खीचूस गीदड़ प्रायः हंसी का पात्र बनता।  जब वह बाहर निकलता तो दूसरे जीव उसका मरियल-सा शरीर देखते और कहते-“वह देखो, मक्खीचूस जा रहा है। 

पर वह परवाह न करता। कंजूसों में यह आदत  ही है।  कंजूसों की अपने घर में भी खिल्ली उड़ती है, पर वह इसे अनसुना कर देते हैं। 

उसी वन में एक दिन एक शिकारी शिकार की तलाश में आया। उसने एक सुअर को देखा और निशाना लगाकर तीर छोड़ा।  तीर जंगली सुअर की कमर को बींधता हुआ शरीर में घुसा।  क्रोधित सुअर शिकारी की ओर दौड़ा और उसने खच्च से अपने नोकीले दांत शिकारी के पेट में घोंप दिए। शिकार और शिकारी दोनों मर गए। 

तभी वहां मक्खीचूस गीदड़ आ निकला। वह ख़ुशी से उछल पड़ा। शिकारी व सुअर के मांस को कम से कम दो महीने चलाना है। उसने हिसाब लगाया। 

“रोज थोड़ा-थोड़ा खाऊंगा।” वह बोला। 

तभी उसकी नजर पास ही पड़े धनुष पर पड़ी। उसने धनुष को सूंघा। धनुष की डोर कोनों पर चमड़ी की पट्टी से लकड़ी से बंधी थी।  उसने सोचा–“आज तो इस चमड़ी की पट्टी को खाकर ही काम चलाऊंगा। मांस खर्च नहीं करूँगा। पूरा बचा लूंगा।”

ऐसा सोचकर वह धनुष का कोना मुंह में डाल पट्टी काटने लगा। ज्यों ही पट्टी कटी, डोर छूटी और धनुष की लकड़ी पट से सीधी हो गई। धनुष का कोना चटाक से गीदड़ के तालू में लगा और उसे चीरता हुआ उसकी नाक तोड़कर बाहर निकला। मक्खीचूस गीदड़ वहीं मर गया। 

सीख : अधिक कंजूसी का परिणाम अच्छा नहीं होता। 

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