Story In Hindi To Read
ये कहानी अपने अन्दर सकारात्मक सोच के साथ – साथ अच्छे काम करने के लिए भी प्रेरणा देगी।
स्वर्ग के दर्शन
लक्ष्मीनारायण बहुत भोला लड़का था। वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनने को कहता था। दादी उसे नागलोक,पाताल,गन्धर्वलोक,सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी। एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग लोक का वर्णन सुनाया।स्वर्ग का वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर लक्ष्मीनारायण स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा।
दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता; किन्तु लक्ष्मीनारायण रोने लगा। रोते – रोते ही वह सो गया। उसे स्वप्न में दिखायी पड़ा कि एक चम् -चम् चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे हैं – ‘बच्चे ! स्वर्ग देखने के लिए मूल्य देना पड़ता है। तुम सर्कस देखने जाते हो तो टिकट देते हो न ? स्वर्ग देखने के लिए भी तुम्हे उसी प्रकार रुपये देने पड़ेंगे।
स्वप्न में लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपये माँगूँगा। लेकिन देवता ने कहा – ‘स्वर्ग में तुम्हारे रुपये नहीं चलते। यहाँ तो भलाई और पुण्य कर्मो का रुपया चलता है। अच्छा, तुम यह डिबिया अपने पास रखो। जब तुम कोई अच्छा काम करोगे तो एक रूपया इसमें आ जायगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रूपया इसमें से उड़ जाएगा। जब यह डिबिया भर जाएगी, तब तुम स्वर्ग देख सकोगे।’
जब लक्ष्मीनारायण की नींद टूटी तो उसने अपने सिरहाने सचमुच एक डिबिया देखी। डिबिया लेकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उस दिन उसकी दादी ने उसे एक पैसा दिया। पैसा लेकर वह घर से निकला। एक रोगी भिखारी उससे पैसा मांगने लगा। लक्ष्मीनारायण भिखारी को बिना पैसे दिए भाग जाना चाहता था, इतने में उसने अपने अध्यापक को सामने से आते देखा। उसके अध्यापक उदार लड़कों की बहुत प्रशंसा किया करते थे। उन्हें देखकर लक्ष्मीनारायण ने भिखारी को पैसा दे दिया। अध्यापक ने उसकी पीठ ठोंकी और प्रशंसा की।
घर लौटकर लक्ष्मीनारायण ने वह डिबिया खोली;किन्तु वह खली पड़ी थी। इस बात से लक्ष्मीनारायण को बहुत दुःख हुआ। वह रोते – रोते सो गया। सपने में उसे वही देवता फिर दिखायी पड़े और बोले – ‘तुमने अध्यापक से प्रशंसा पाने के लिए पैसा दिया था, सो प्रशंसा मिल गयी। अब रोते क्यों हो ? किसी लाभ की आशा काम किया जाता है, वह तो व्यापार है, वह पुण्य थोड़े ही है। ‘
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दूसरे दिन लक्ष्मीनारायण को उसकी दादी ने दो संतरे ख़रीदे। उसका साथ मोतीलाल बीमार था। बाजार से लौटते समय वह अपने मित्र को देखने उसके घर चला गया। मोतीलाल को देखने उसके घर वैध आये थे। वैध जी ने दवा देकर मोतीलाल को मोतीलाल की माता से कहा – ‘इसे आज संतरे का रस देना। ‘मोतीलाल की माता बहुत गरीब थी। वह रोने लगी और बोली – ‘मैं मज़दूरी करके पेट भरती हूँ। इस समय बेटे की बीमारी में कई दिन से काम करने नहीं जा सकी । मेरे पास संतरे ख़रीदने के लिए एक भी पैसा नहीं है। ‘
लक्ष्मीनारायण ने अपने दोनों संतरे मोतीलाल की माँ को दिये। वह लक्ष्मीनारायण को आशीर्वाद देने लगी। घर आकर जब लक्ष्मीनारायण ने अपनी डिबिया खोली तो उसमे दो रुपये चमक रहे थे।
एक दिन लक्ष्मीनारायण खेल में लगा था। उसकी छोटी बहिन वहाँ आयी और उसके खिलौनों को उठाने लगी। लक्ष्मीनारायण ने उसे रोका। जब वह न मानी तो उसने उसे पीट दिया। बेचारी लड़की रोने लगी। इस बार जब उसने डिबिया खोली तो देखा कि उसके पहले के इकट्ठे कई रुपये उड़ गये हैं। अब उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने आगे कोई बुरा काम न करने का पक्का निश्चय कर लिया।
मनुष्य जैसा काम करता है,वैसा उसका स्वभाव हो जाता है। जो बुरे काम करता है,उसका स्वभाव बुरा हो जाता है। उसे फिर बुरा काम करने में ही आनंद आता है। जो अच्छा काम करता है,उसका स्वभाव अच्छा हो जाता है। उसे बुरा काम करने की बात भी बहुत बुरी लगती है। लक्ष्मीनारायण पहले रुपये के लोभ से अच्छा काम करता था। धीरे – धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया। अच्छा काम करते – करते उसकी डिबिया रुपयों से भर गयी। स्वर्ग देखने की आशा से प्रसन्न होता,उस डिबिया को लेकर वह अपने बगीचे में पहुँचा।
लक्ष्मीनारायण ने देखा कि बगीचे में पेड़ के नीचे बैठा हुआ एक बूढ़ा साधु रो रहा है। वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और बोला —‘बाबा! आप क्यों रो रहे हैं ?’
साधु बोला —‘बेटा! जैसी डिबिया तुम्हारे हाथ में है, वैसी ही एक डिबिया मेरे पास थी। बहुत दिन परिश्रम करके मैंने उसे रुपयों से भरा था। बड़ी आशा थी कि उसके रुपयों से स्वर्ग देखूँगा; किन्तु आज गंगा जी में स्नान करते समय वह डिबिया पानी में गिर गयी।’
लक्ष्मीनारायण ने कहा – बाबा! आप रोओ मत। मेरी डिबिया भी भरी हुई है। आप इसे ले लो।’
साधु बोला – ‘तुमने इसे बड़े परिश्रम से भरा है ,तुम्हें इसे देने से दुःख होगा।’
लक्ष्मीनारायण ने कहा – ‘मुझे दुःख नहीं होगा बाबा! मैं तो लड़का हूँ। मुझे अभी पता नहीं कितने दिन जीना है। मैं तो ऐसी कई डिबिया रुपये इकट्ठे कर सकता हूँ। आप बूढ़े हो गये हैं। आप अब दूसरी डिबिया पता नहीं भर पावेंगे या नहीं। इसलिए आप मेरी डिबिया ले लीजिये।’
साधु ने डिबिया लेकर लक्ष्मीनारायण के नेत्रों पर हाथ फेर दिया। लक्ष्मीनारायण के नेत्र बंद हो गये। उसे स्वर्ग दिखायी पड़ने लगा – ऐसा सुन्दर स्वर्ग कि दादी ने जो स्वर्ग का वर्णन किया था, वह वर्णन तो स्वर्ग के एक कोने का भी ठीक वर्णन नहीं था।
जब लक्ष्मीनारायण ने नेत्र खोले तो साधु के बदले स्वप्न में दिखायी पड़ने वाला वही देवता उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ा था। देवता ने कहा – ‘बेटा ! जो लोग अच्छे काम करते हैं, स्वर्ग उनका घर बन जाता है। तुम इसी प्रकार जीवन में भलाई करते रहोगे तो अंत में स्वर्ग में पहुँच जाओगे।’
देवता इतना कहकर वहीं अद्रश्य हो गये।
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