राष्ट्रीय एकता पर निबंध
राष्ट्र एकता एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया व एक भावना है जो किसी राष्ट्र अथवा देश के लोगों में भाई-चारा अथवा राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं अपनापन का भाव प्रदर्शित करती है। एक देश में रह रहे लोगों के बीच एकता की शक्ति के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिये ‘राष्ट्रीय एकता’ एक तरीका है।
प्रस्तावना
राष्ट्रीय एकता एक नैतिक और मनोवैज्ञानिक अवधारणा है। यह एक भावना है और राष्ट्र का एकीकरण करनेवाली मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो राष्ट्र के निवासियों में भाईचारा तथा राष्ट्र के प्रति अपनेपन का भाव भरती है और राष्ट्र को संगठित तथा सशक्त बनाती था। राष्ट्रीय एकता के लिए भाषा, धर्म, जाति और संस्कृति की एकता आवश्यक नहीं होती और न विविधता बाधक होती है, बल्कि राष्ट्रीय एकता विविधता के बीच ही जन्म लेती है, फूलती और फलती है।
हमारा देश भारत एक ऐसा ही देश है, जहाँ विविधता में एकता पायी जाती है। अतः राष्ट्रीय एकता को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय एकता राष्ट्र के निवासियों के हृदय की वह पवित्र भावना है जो भूगोल, भाषा, धर्म, जाति, सम्प्रदाय और संस्कृति में भिन्नता होते हुए भी उन्हें एकता के सूत्र में बाँधकर देश को संगठित और सुदृढ़ बनाती है।
राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता
प्रायः हम देखते हैं कि नव स्वतन्त्र देशों को जिस समस्या का सामना करना पड़ता है, वह राष्ट्रीय एकता ही है। राष्ट्रीय एकता राष्ट्र का प्राण है। जब राष्ट्रीय एकता टूटती है तो राष्ट्र समाप्त हो जाता है। इतिहास इसका प्रमाण है कि जब-जब हमारे यहाँ राष्ट्रीय एकता का अभाव हुआ, तब-तब हमें अपमानित होना पड़ा और हमारे देश को गुलामी का जीवन जीना पड़ा। पुनः जब हममें राष्ट्रीय चेतना जागी तो हम एक हुए, जिसके फलस्वरूप हमें आजादी मिली, सम्मान मिला और आज दुनिया में हमारा गौरवपूर्ण स्थान है। इस प्रकार राष्ट्रीय एकता राष्ट्र की प्राणदायिनी शक्ति है और विकासशील राष्ट्र के लिए इसकी आवश्यकता तो स्वयंसिद्ध है।
राष्ट्रीय एकता का अवरोधक तत्त्व
हमें स्वतंत्र हुए लगभग 74 वर्ष बीत गये है, किन्तु आज भी हम पूर्ण रूप से राष्ट्रीय एकता के सूत्र में नहीं बंध पाये हैं। हमारे देश में साम्प्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रीयता की भावना, जातिवाद आदि ऐसे तत्त्व हैं, जिनके द्वारा राष्ट्रीय एकता की भावना में अवरोध पैदा हो रहा है। देश में अनेक सम्प्रदायों के लोग रहते हैं, जो अपने को एक-दूसरे से भिन्न और श्रेष्ट समझते हैं। वे छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से लड़ते हैं। कभी-कभी उनकी लड़ाई बहुत उग्र (बड़ा) रूप धारण कर जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। इस प्रकार की साम्प्रदायिक भावना राष्ट्रीय एकता को विघटित करती है। भाषावाद भी राष्ट्रीय एकता को विकसित होने में बाधक होता है, क्योंकि लोग भाषा के आधार पर राज्यों की सीमा बनाने की माँग करते हैं।
भारत में भौगोलिक भिन्नता के आधार पर अनेक क्षेत्र हैं। अपने-अपने क्षेत्रों के प्रति निष्ठा और दूसरे के क्षेत्र के प्रति घृणा की भावना, क्षेत्रीयता की भावना कहलाती है। अतः विभिन्न क्षेत्रों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या, क्षेत्रीयता की भावना को जन्म देती है। क्षेत्रीयता की भावना के साथ जातिवाद भी हमारी राष्ट्रीय एकता में बाधक है। उच्च जाति के लोगों और हरिजनों के बीच होनेवाले संघर्ष जातिवाद के ही परिणाम हैं। इस प्रकार साम्प्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रीयता की भावना और जातिवाद हमारी राष्ट्रीय एकता के महान शत्रु हैं।
राष्ट्रीय एकता के पोषक तत्त्व
देश की सुरक्षा और विकास के लिए राष्ट्रीय एकता बहुत जरुरी है। अतः हमें राष्ट्रीय एकता के पोषक तत्त्वों की और ध्यान देना चाहिए। राष्ट्रीय एकता के पोषक तत्त्वों में नागरिकता, एक राष्ट्रभाषा, संविधान, राष्ट्रीय प्रतीक, राष्ट्रीय पर्व, सामाजिक समानता आदि मुख्य हैं। इन तत्त्वों से लोगों में विद्वेष की भावना समाप्त होती है और राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है। महापुरुषों के संदेशों का पालन भी राष्ट्रीय एकता को पोषित और पुष्ट करता है।
उपसंहार
भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है। अतः इसके विकास व उन्नति के लिए आवश्यक है कि हम छोटी-छोटी बातों को लेकर संघर्ष न करें। इसके लिए हमारी सरकार को राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्त्वों को कारण नष्ट करने का प्रयत्न करना चाहिए। देश के हर नागरिक को अपने हृदय में यह भावना जाग्रत करनी चाहिए कि हम सब पहले भारतीय हैं, इसके बाद पंजाबी, बंगाली, गुजराती, मद्रासी आदि हैं। इस भावना से ही हम विश्व के अन्य राष्ट्रों में अपना गौरवपूर्ण स्थान बना सकते हैं।
राष्ट्रीय एकता पर निबंध
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